ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
राजन दबी आवाज में कहने लगा - ‘पार्वती! मैं जानता हूँ कि तुम मुझसे रुष्ट हो और मेरे कारण दुखी भी हो। आज प्रातःकाल ही मैनेजर से मिला हूँ। पूजा की छुट्टियों के पश्चात् मकान मिल जाएगा। लाचारी है, नहीं तो कब का चला गया होता।’
यह सुनकर पार्वती मौन रही। जब राजन ने इस पर भी कोई उत्तर न पाया तो नाक सिकोड़ता हुआ बाहर चला गया और मंदिर की सीढ़ियों पर जा बैठा। आज वह क्रोधाग्नि में जल रहा था।
आज भी प्रतिदिन की तरह मंदिर की घंटियाँ बज रही थीं, देवताओं के पुजारी हाथों में पूजा के पुष्प तथा थालियों में जलते हुए दीप लेकर मंदिर की ओर जा रहे थे, राजन की दृष्टि बार-बार सीढ़ियों पर पड़ती परंतु पार्वती के पाँव न देख पाता। उसे विश्वास था, वह अवश्य आएगी क्योंकि राजन उससे रुष्ट है और वह प्रतीक्षा किए जा रहा था।
पार्वती की प्रतीक्षा ही उसकी पूजा थी।
परंतु वह न आई। आज पूजा पर क्यों न आई यह सोचकर उसके मस्तिष्क में भांति-भांति के विचार आने लगे। कहीं उसे मुझसे घृणा तो नहीं। नहीं... ऐसा नहीं हो सकता। यह सोचते ही वह बरामदे की ओर बढ़ा और वहाँ से सारे मंदिर की ओर नजर घुमाई परंतु पार्वती को देख न पाया। मंदिर में पहले से भी अधिक सजावट थी। शायद पूजा की तैयारी हो रही थी। कल से उसकी भी दो दिन की छुट्टियाँ थीं और वह अकेला होगा। आज उसे मंदिर के देवता भी उदास खड़े दिखते थे, मानों वह भी अपनी पुजारिन की प्रतीक्षा में हों।
कल की तरह राजन आज भी घर देरी से लौटा। घर में सब सो चुके थे। वह धीरे-धीरे अपने कमरे तक पहुँचा और चुपचाप अंदर चला गया। प्रकाश होते ही वह चारों तरफ देखने लगा।
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