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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘राजन मुझे कुछ दिखाई नहीं देता – फिर तुम कहना क्या चाहते हो?’

‘तुम्हारे दिल की कहानी जो तुम्हारी पुतलियों में लिख गई है, वह मुझे सब कुछ बता रही है।’

पार्वती मौन होकर उसे देखने लगी – राजन उस पर झुकते हुए बोला-

‘देखो – इन दो प्यालों में प्रेम रस छलक रहा है। तुम्हारे हृदय की यह धड़कन बार-बार मेरे कानों में कह रही है कि तुम राजन की हो।’

पार्वती यह सुनते ही चिल्लाई -

‘राजन!’ और वह गाँव की ओर भागने लगी – राजन ने उसे रोकना चाहा। परंतु वह न रुकी – उसने पुकारा भी पर कोई उत्तर न मिला।

राजन किनारे के एक पत्थर पर बैठ गया और अपने कहे पर विचारने लगा – कहीं पार्वती यह सब अपने बाबा से तो नहीं कह देगी। यदि कह दिया तो वह उन्हें मुँह कैसे दिखाएगा? इसी विचार में डूबा-डूबा आधी रात तक वह वहीं बैठा रहा।

जब वह घर पहुँचा तो हर ओर सन्नाटा छाया हुआ था – सब सो चुके थे। वह धीरे-धीरे अपने कमरे में पहुँचा और चुपचाप बिस्तर पर लेट गया, परंतु उसे नींद न आई।

प्रातःकाल जब वह अपने कमरे से बाहर निकला तो आँगन के उस पार बरामदे में पार्वती खड़ी पालतू चकोर को बाजरा खिला रही थी। राजन को देखते ही उसने मुँह फेर लिया पर राजन धीरे-धीरे बढ़ता हुआ उसके पास आ पहुँचा। पार्वती बिना कुछ कहे सुने मुँह मोड़कर अंदर चली गई। राजन को इस बात पर बहुत क्रोध आया और वह जल्दी-जल्दी पैर उठाता बाहर चला गया। उसने निश्चय किया कि जैसे भी हो आज उसे अलग रहने का प्रबंध करना ही होगा, आखिर कब तक दूसरों के घर रहेगा। कंपनी पहुँचते ही वह मैनेजर से मिला, उसने विश्वास दिलाया कि शीघ्र कोई मकान दिला देगा।

सारा दिन वह बेचैन सा रहा। उसे रह-रहकर पार्वती पर क्रोध आ रहा था। आखिर उसने किया ही क्या था, वह उससे बिगड़ गई।

सायंकाल जब वह घर लौटा तो बाबा घर पर न थे। राजन धीरे-धीरे पग रखता हुए अपने कमरे तक पहुँचा। पार्वती अकेली बैठी थी। वह बेचैन दिखाई देती थी। राजन को देखते ही उसने अपनी आँखें झुका लीं।

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