लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान

जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

253 पाठक हैं

हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

राजन से जब कोई उत्तर न बन पड़ा तो मौन हो गया। बातों ही बातों में दोनों यूँ खो गए कि वे जान भी न पाए कि कब अंधकार छा गया। दोनों चुपचाप जा रहे थे। शीतल पवन पार्वती के बालों से खेल रही थी, वह बार-बार चेहरे पर आ-आकर बिखर जाते थे। वह हर बार अपनी कोमल उंगलियों से उन्हें हटा देती थी। परंतु एक हवा का झोंका था जो उसे बराबर तंग किए जा रहा था और अंत में पार्वती को ही हार माननी पड़ी। लट उसके चेहरे पर आकर जम गई। राजन ने मुस्कुराते हुए अपने हाथों से हटा दिया और इस तरह पीछे की ओर बिछा दिया कि वायु के लाख यत्न करने पर भी वह माथे पर फिर न आई।

‘तुम्हारे हाथों में जादू है।’ पार्वती ने उसकी ओर देखते हुए कहा।

‘हाथों में नहीं, दिल में।’

‘कैसा जादू?’

‘प्रेम का, पार्वती क्या तुम्हारे दिल में भी प्रेम बसता है?’

‘क्यों नहीं? और जिस दिल में प्रेम न हो वह दिल ही क्या?’

‘तो तुम्हें भी किसी-न-किसी से प्रेम अवश्य होगा।’

‘है तो – बाबा से, भगवान से और... और।’

‘और मुझसे?’राजन पार्वती के समीप होकर बोला।

‘तुमसे।’ कहकर वह काँप गई।

‘हाँ पार्वती! अब मुझसे भेद कैसा। मैं तुम्हारे मुख से यही सुनने को बेचैन था’ कहते-कहते राजन ने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया।

पार्वती काँप रही थी – वह लड़खड़ाती बोली –

‘प्रेम? कैसा प्रेम? राजन यह तुम?’

‘अपने मन की कह रहा हूँ – मेरी आँखों में देखो, इनमें तुम्हें जीवन की झलक दिखाई देगी।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book