ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
राजन ने आवाज लगाई पर इस कोलाहल में वह उसके कानों तक ही रह गई। राजन मंदिर के बंद द्वार के साथ चिपककर खड़ा हो गया। मंदिर की घंटियाँ स्वयं ही बज रही थीं। वर्षा की छींटे वायु की तेजी से उछलकर मंदिर की सीढ़ियों और बरामदे के बड़े पत्थरों को स्नान करा रहे थे, ताकि भगवान् के घर के किसी कोने में धूल न रह जाए। ‘राजन, राजन’ कोई उसे पुकार रहा था। वह यह सोचकर आश्चर्य में पड़ गया कि इस तूफान में उसे खोजने वाला कौन है? कुंदन के सिवाय उसे जानता ही कौन था। राजन...।
उसका यहाँ क्या काम? एक बार फिर ‘राजन-राजन’ की पुकार सुनाई दी। तुरंत ही उसने किसी छाया को सीढ़ियों से ऊपर आते देखा। राजन भागता हुआ उसके पास पहुँचा और चिल्लाया-
‘कौन हो तुम?’
‘क्या तुम ही राजन हो?’
बिजली की चमक में राजन ने देखा कि पूछने वाला एक अजनबी है, जिसे उसने आज से पहले कभी नहीं देखा था। वर्षा से बचाव के लिए उसके सिर पर एक सन की थैली रखी थी। पहले तो राजन घबरा-सा गया, परंतु फिर संभलते हुए बोला-
‘हाँ, मैं ही राजन हूँ।’
‘तो चलिए हमारे साथ।’
‘कहाँ?’
‘ठाकुर बाबा बुला रहे हैं।’ और ‘सन’ की एक थैली राजन को पकड़ा दी। राजन थैली सिर पर डालकर चुपचाप उसके साथ हो लिया। सारे रास्ते वह यही सोच रहा था कि ठाकुर बाबा हैं कौन?
पहले तो राजन को घबराहट हुई, परंतु जब वह अजनबी गाँव में पहुँचा तो राजन को कुछ धीरज हुआ। थोड़ी देर में वे दोनों एक पत्थर के बड़े मकान के सामने आकर रुक गए। अजनबी से संकेत पाकर, उसने आँगन में प्रवेश किया। सामने एक सफेद दाढ़ी वाला पुरुष उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। राजन ने झुककर प्रणाम किया। उसने मुस्कुराते हुए पूछा - ‘क्या तुम्हीं राजन हो?’
‘जी, परंतु।’
‘चिंता की कोई बात नहीं मैं हूँ ठाकुर बाबा। ‘सीतलवादी’ का बच्चा-बच्चा मुझे जानता है। क्या कोई परदेसी हो?’
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