ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
वह पागलों की भांति सोचता हुआ लिहाफ छोड़ शीघ्रता से बाहर आने लगा। अंधेरे में किसी वस्तु से राजन के सारे वस्त्र भीग गए। झुँझलाया हुआ बाहर निकला। यह मिट्टी का तेल था। काफी घबराहट में उसे देख रही थी कि वह बाहर चला गया।
वह भागता हुआ कुंदन के पास जा पहुँचा – कुंदन उसे इस दशा में देखकर घबरा गया। राजन का साँस फूल रहा था। उसने टूटे हुए शब्दों में कहा-
‘कुंदन – काकी बहुत बीमार है, शीघ्र जाओ, कहीं....।’
‘परंतु ड्यूटी...।’
‘कुंदन यदि मैं पागल हूँ तो भी बुरा नहीं।’
कुंदन ने बंदूक राजन को दे दी और नीचे की ओर भागने लगा।
परंतु यह तेल की बदबू कैसी है?
यह सोच वह एक क्षण के लिए रुक गया और काँप उठा।
राजन शैतान की तरह उसे देख रहा था। बंदूक की नली उसके सीने पर थी।
‘राजन! यह क्या?’
‘कुंदन तुम मेरे मित्र हो न। इसलिए कहता हूँ – जितना जल्द भाग सको भाग जाओ। एक भयानक तूफान आने वाला है।’
‘राजन!’ कुंदन उसकी ओर देखते हुए बोला।
‘देखो कुंदन! यदि आगे कदम बढ़ाया तो गोली से उड़ा दिए जाओगे।’
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