ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
|
1 पाठकों को प्रिय 253 पाठक हैं |
हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘राजन पर मानों एक बिजली-सी गिर पड़ी। दरवाजे को जोर से धक्का दिया, दरवाजा खुल गया। पार्वती चौंककर एक ओर देखने लगी – राजन उसकी ओर बढ़ा। पार्वती ने काँपते हुए कदम पीछे हटाए।’
‘जानती हो संसार में सबसे बड़ा धोखा विश्वास है, जिसका दूसरा नाम है औरत।’
‘परंतु यह... तुम मुझे इस प्रकार क्यों देख रहे हो?’
‘औरत को पढ़ने का यत्न कर रहा हूँ। तुम संसार को धोखा दे सकती हो, पति को धोखे में रख सकती हो, परंतु उस दिल को नहीं जिसने सदा तुम्हें चाहा है।’
‘यह तुम... यह तुम...।’
‘इस दिल की कह रहा हूँ जिसके तार तुम्हारे दिल के तार से जुड़े हैं – और कोई भी तोड़ नहीं सकता।’ पार्वती भयभीत हो पीछे हटने लगी, परंतु राजन लपककर बोला, ‘इन आँखों से बनावटी आँसू पोंछ डालो यह तुम्हारे नहीं, इस समाज के आँसू हैं। आओ इस समाज से कहीं दूर भाग चलें।’
‘राजन! होश में तो हो।’ वह संभलते हुए बोली। परंतु उसके शब्दों में भय काँप रहा था।
‘हाँ – डरो नहीं। सच्चे प्रेमी समाज से दूर ही रह सकते हैं।’
‘प्रेम – कैसे प्रेम – मुझे किसी से कोई प्रेम नहीं।’
‘यह तुम्हारा दिल नहीं बोल रहा है तुम्हारे दिल की धड़कन अब भी मेरा नाम ले रही है। देखो तुम्हारी आँखों में मेरी ही तस्वीर है।’
यह कहते ही वह आगे बढ़ा और उसका हाथ खींचा – पार्वती ने झटके से अपना हाथ झुड़ाया और बोली-
‘शायद तुम पागल हो गए हो – इतना तो सोचो कि मैं तुम्हारे मालिक की अमानत हूँ। एक विधवा हूँ।’
|