ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
जत्था समीप आ गया। वह जत्था मजदूरों का था जो राजन के पीछे-पीछे चला आ रहा था। उनके शोर में एक भयानक तूफान सा था जो सारी ‘वादी’ में छा रहा था। सबने राजन को आश्चर्य भरी दृष्टि से देखा और सब कुछ समझ गए परंतु यह कोई न पूछ सका कि यह कैसे हुआ! सबने पथराई दृष्टि से उस शव को देखा, राजन ने मकान के बाहर वाले सीमेंट के चबूतरे पर शव रख दिया था।
पार्वती का साँस रुकने लगा, शरीर ठंडा हो गया। उसने अपने पति के शव को देखा और चिल्ला उठी। फिर तुरंत ही पति के मृत शरीर से लिपट गई। केशव और चौबेजी अभी तक अचंभे में पड़े थे परंतु माधो क्रोध व घृणा-भरी दृष्टि से राजन की ओर बढ़ा।
माधो सामने एक दीवार की ओर आ खड़ा हुआ। राजन ने ज्यों-ही अपना मुख ऊपर किया माधो ने जोर से एक थप्पड़ उसके मुँह पर दे मारा। अभी वह संभल भी न पाया था कि माधो ने दो-चार थप्पड़ जमा दिए और साथ ही मुक्कों और धक्कों की बौछार आरंभ कर दी। राजन बेबस सा लड़खड़ाता हुआ धरती पर जा गिरा। जत्थे से किसी की आवाज ने माधो के हाथ रोक दिए। सब लोगों की दृष्टि उसकी ओर गई। यह कुंदन था जो दाँत पीसता हुआ क्रोध में माधो की ओर देख रहा था और कह रहा था।
‘मनुष्यता का दावा करने वालो इस ‘गरीब’ से इतना तो पूछा होता कि यह सब कैसे हुआ? कोयले की खानों में काम करते-करते शायद तुम सब लोगों के दिल भी पत्थर और काले हो गए हैं, जिनमें रक्त के स्थान पर कालिख बसने लगी है।’
पल-भर के लिए नीरवता छा गई। कोई भी मुँह न खोल सका – जैसे सब उसके कहे पर अमल कर रहे हों। घर पहुँचते ही कुंदन ने राजन को बिस्तर पर लिया दिया। फिर गर्म अंगीठी से कपड़ा गर्म कर उसके जख्मों को सेंकने लगा – राजन आँखों में आँसू लाते हुए बोला-
‘कुंदन शायद यह भी मेरे प्रेम की कोई परीक्षा है।’
‘तुम तो पागल हो गए हो। मेरी मानों तो यहाँ से कहीं दूर चले जाओ। जो जीवन बचा है उसे यूँ क्यों समाप्त किए देते हो।’
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