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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘उसका तो यह अधिक खांड वाला है।’ और मुस्कुराते हुए दूसरा प्याला राजन की ओर बढ़ाया – राजन हिचकिचाया।

‘केवल सादी चाय, तुम्हें भाती है – फिर तुम्हें अभी बहुत काम करना है – कलुआ की बहू को अस्पताल भी पहुँचाना है।’

सब हँस पड़े – राजन ने काँपते हाथों से चाय का प्याला पकड़ लिया और जल्दी-जल्दी चाय पीने लगा।

आज उसे नए घर में आए तीन मास हो चुके थे – इस बीच वह कितनी ही पहेलियाँ, चुटकुले और पुस्तकें अपने पति से सुन चुकी थी। कुछ यहाँ की और कुछ पहाड़ों के दूसरी ओर बसी दुनिया की।

यह सोच पार्वती के होंठो पर मुस्कान फिर नाच उठी।

अचानक वह फिर उदास हो गई। दरवाजे पर माधो को खड़ा देख काँप गई और झट से ओढ़नी सिर पर सरकाई, वह जान भी न पाई कि माधो कब से खड़ा उसे देखता रहा।

‘कुशल तो है पार्वती!’ वह एक अनोखी आवाज में बोला।

‘माधो काका, आओ, जरा आराम करने को बैठी थी।’

‘जरा मैनेजर साहब से मिलना था।’

‘वह तो अभी कंपनी गए हैं – राजन आया था कलुआ की बहू की तबियत खराब हो गई थी।’

‘राजन ने मुझसे कह दिया होता – उन्हें क्यों बेकार में कष्ट दिया।’

‘तो क्या हुआ – उनका भी तो कुछ कर्त्तव्य है।’

‘पार्वती बुरा न मानों तो एक बात कहूँ।’

‘क्या बात है?’ पार्वती सतर्क हो गई।

‘राजन का इस घर में अधिक आना ठीक नहीं – फिर भी नीच जाति का है – कभी।’

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