ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
राजन ने नाव जल में धकेल दी और उसमें बैठ गया। शम्भू उठा, किनारे जा खड़ा हो उसे देखने लगा। नाव लहरों के थपेड़ों से हिलती-डुलती दौड़ती जा रही थी। तूफान का जोर बढ़ रहा था। शम्भू की आँखों से आँसू बह निकले।
थोड़ी ही देर में नदी की लहरों ने नाव को कहीं का कहीं पहुँचा दिया। राजन नाव को किनारे-किनारे चलाने का प्रयत्न करता परंतु पानी का बहाव बार-बार उसे मझधार की ओर ले जाता। बहाव उधर होने के कारण नाव की गति तेज हो गई और धीरे-धीरे राजन बाबू के काबू से बाहर होने लगी। राजन ने जोर से नाव का किनारा पकड़ लिया और सिर घुटनों में दबा नाव को भगवान के भरोसे छोड़ दिया। न जाने कितनी बार नाव भँवर में डगमगाई और पानी उछल-उछलकर उसके सिर से टकराता परंतु वह नीचा सिर किए बैठा रहा।
राजन ने धीरे से जब अपना सिर उठाया को दूर ‘वादी’ के झरोखे से प्रकाश दिखाई दे रहा था। पानी का जोर पहले से कुछ धीमा हो चुका था परंतु नाव अब भी पूरी तरह से न संभल पाई थी। कटे हुए पेड़, जानवरों के शरीर आदि वस्तुएं नाव के दोनों ओर बहे जा रहे थे।
ज्यों-ज्यों नाव प्रकाश के समीप आने लगी राजन के दिल की धड़कन तेज होने लगी। जब दूर आकाश में उसने आतिशबाजी फटते देखी तो उसका दिल फटने लगा। वह आहत सा उन बिखरते हुए रंगीन सितारों को देखने लगा, जो हरीश की शादी का संकेत ‘वादी’ की ऊँची चोटियों को सुना रहे थे।
अचानक नाव एक लकड़ी के तने से टकराई और उलट गई, राजन ने उछलकर तने को पकड़ लिया और तैर कर जल से बाहर आने का प्रयत्न करने लगा। थोड़े ही प्रयास के बाद वह तने पर जा बैठा जो जल में सीधा पड़ा था। राजन ने देखा कि वह तना एक किनारे के पेड़ का था जो तूफान के जोर से गिरकर जल की लहरों में स्नान कर रहा था। राजन ने साहस से काम लिया। धीरे-धीरे उस पर चलकर किनारे पर पहुँच गया।
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