लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान

जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

253 पाठक हैं

हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘बाढ़ नहीं पगले, यह तूफान मेरे दिल के तूफान को रोकने आया है।’

‘मैं समझा नहीं, कैसा तूफान?’

‘यह पानी में उठती तेज लहरें मुझे शीघ्र ही ‘सीतलवादी’ तक पहुँचा देंगी।’

‘नदी के रास्ते जाना चाहते हो इस तूफान में? सीतलवादी पहुँचो अथवा न पहुँचो, स्वर्ग अवश्य पहुँच जाओगे।’

‘शम्भू!’ राजन आवेश में चिल्लाया। शम्भू चुप हो गया। राजन फिर बोला, धीरे से-

‘किनारे एक नाव खड़ी है, उसे ले जाऊँगा।’

‘राजन बाबू! मैं तुम्हें कभी नहीं जाने दूँगा।’

‘तुम मुझे रोक सकते हो शम्भू परंतु मेरे अंदर उठते तूफान को कौन रोकेगा।’ यह कहकर राजन ने गहरी साँस ली और नदी की ओर चल दिया। शम्भू खड़ा देखता रहा। उसने चारों ओर घूमकर देखा – वहाँ कोई न था जिसे वह मदद के लिए पुकारे, चारों ओर अंधकार छा रहा था। उसकी दृष्टि जब घूमकर राजन का पीछा करने लगी तो वह नजरों से ओझल हो चुका था। उसी समय शम्भू राजन को पुकारते हुए उसके पीछे दौड़ने लगा।

राजन सीधे नदी किनारे जा रुका। दूर-दूर तक जल दिखाई दे रहा था और पत्थरों से टकराते जल का भयानक शोर हो रहा था, मानों आज पत्थर भी इस तूफान की चपेट में आकर कराह रहे हों। परंतु एक तूफान था कि बढ़ता ही चला जा रहा था। ज्यों ही राजन ने किनारे रखी एक छोटी-सी नाव का रस्सा खोला, शम्भू ने पीछे से आकर उसकी कमर में हाथ डाल दिए और रोकते हुए बोला - ‘राजन बाबू! काल के मुँह में जाओगे। तुम आत्महत्या करने जा रहे हो जो कि एक भारी पाप है तुम मान जाओ। प्रातःकाल तड़के ही...।’

राजन ने एक जोर का झटका दिया – शम्भू दूर जा गिरा।

राजन ने उसके निराश चेहरे पर एक दया भरी दृष्टि डाली और बोला - ‘शम्भू! तू मुझे काल के मुँह से बचाना चाहता है, परंतु तू क्या जाने कि मेरा वहाँ न जाना मृत्यु से भी बढ़कर है। चिता के समान भयानक और जीते जी जलने वाला काल! अच्छा शम्भू – जीवित रहा तो फिर मिलूँगा।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book