ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
यह सुनते ही केशव काका चुप हो गए और पार्वती की ओर देखते रहे। पार्वती के मुख पर अजीब शांति थी, परंतु हृदय में तूफान-सा उठ खड़ा हुआ। केशव काका संभलते हुए लड़खड़ाते हुए शब्दों में बोले -
‘पार्वती यह भी संसार की एक रीति है, जिसके अंतर्गत राजन एक मनुष्य होते हुए भी मनुष्य कहलाने योग्य नहीं। रस्मों और समाज के नियमों के सामने मनुष्य को झुकना ही पड़ता है।’
‘यह नियम बनाया किसने?’
‘भगवान ने, बेटी! एक-दूसरे के तुम योग्य भी नहीं हो। वह एक मजदूर और तुम एक अफसर की लड़की – वह एक अछूत और तुम एक ब्राह्मण – वह एक नास्तिक और तुम देवता की पुजारिन – नहीं तो बाबा ही क्यों रोकते।’
‘तो क्या मुझे अपना बलिदान देना होगा?’
‘हाँ पार्वती! इस शरीर का, जो संसार में बनाया हुआ एक भगवान का खिलौना है – वही इसे ले जा सकता है जो इसके योग्य समझा जाए।’
‘तो हृदय की लगन एक ढोंग हुई और यह सच्चे प्रेम की कहानी एक कोरा स्वप्न?’
‘दिल को वही जीत सकता है जिसकी लगन सच्ची हो और लगन केवल देवता से ही हो सकती है, मनुष्य से नहीं।’
‘वह क्यों?’
‘क्योंकि मनुष्य के हृदय में प्रेम के साथ-साथ झूठ, धोखा, प्रपंच और स्वार्थ भी बसा है।’
‘परंतु राजन ऐसा नहीं काका! वह अपने प्राण दे देगा! मेरी दी हुई आशाओं के कारण वह जी रहा है।’
‘चकोर चाँद तक पहुँचने के लिए भले ही किरणों का सहारा ले, परंतु वह किरणें कभी उसे चाँद तक नहीं पहुँचा सकतीं।’
‘तो उसे चकोर की भांति फड़फड़ाते हुए प्राण देने होंगे।’
‘संसार में सदा ऐसा होता आया है। जब विवशताओं में फंस जाए तो भगवान का सहारा ले उसे हर तूफान का सामना करना पड़ता है।’
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