ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘बाबा! आप यह क्या कह रहे हैं?’
‘बेटा मेरे कहने अथवा न कहने से क्या....? देखो तूफान का जोर बढ़ रहा है। भला मैं या तुम इसे क्या रोक सकते हैं?’
रामू ने खिड़की बंद करनी चाही परंतु बाबा ने संकेत से उसे रोक दिया। उनके मुख की आकृति थोड़ी-थोड़ी देर में बदलने लगी। डॉक्टर ने देखा, उनका श्वास रुक गया था। मुख से टूटे-फूटे शब्द ही निकल रहे थे। वह ‘इंजेक्शन’ की सुई लेकर आगे बढ़ा, परंतु बाबा ने हाथ रोक दिया और काँपते हुए बोले -
‘रहने दो डॉक्टर... अब इन सबका... क्या होगा – दूर जा रहा हूँ।’
फिर बाबा चुप हो गए – उनकी बदलती हुई आँखें सबको देख रही थीं। बाबा ने पार्वती का हाथ पकड़कर हरीश के हाथों में दे दिया और बोले-
‘हरीश अब पार्वती तुम्हारी अमानत है। मैं तो जा रहा हूँ देखो इसके आँसू न बहें।’
बाबा का स्वर वही रुक गया, खिड़की के किवाड़ एक-बारगी ही जोर से बजे। पार्वती चिल्लाई और बाबा से लिपटकर जोर-जोर से रोने लगी। सबकी आँखों से आँसू बह निकले। केशव ने पार्वती को बाबा से अलग किया और चद्दर से उनका मुँह ढक दिया। पार्वती एक ओर सहमकर खड़ी हो गई। उसके बहते आँसू गालों पर जमकर रह गए।
दूसरे दिन जब राजन को बाबा के चल बसने की सूचना मिली तो उसे बहुत दुःख हुआ। सबसे अधिक रंज उसको इस बात का था कि अंतिम समय उनके दर्शन भी न कर सका।
वह तुरंत बाबा के घर पहुँचा – केशव, माधो, हरीश और कंपनी के कुछ लोग वहाँ मौजूद थे। राजन भी चुपचाप एक ओर जाकर बैठ गया, सामने पार्वती मूर्ति सी बनी बैठी थी। उसने एक बार राजन को देखा – आँखें मिलते ही मुँह नीचे कर लिया।
कंपनी का अलार्म बजते ही सबने केशव से आज्ञा ली और जाने लगे, परंतु राजन बैठा रहा। हरीश ड्यूटी पर जाते समय राजन से बोला –
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