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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

पार्वती चुप हो गई, आँसू पोंछ डाले, फिर बाबा की ओर देख मुस्कुराई। उसे प्रसन्न देख बाबा के होंठों पर मुस्कान की स्पष्ट रेखाएँ खिंचकर मिट गई। पल भर के लिए सब बाबा को देखने लगे। कमरे में नीरवता होने से बाहर की तेज वायु का साँय-साँय शब्द सुनाई दे रहा था। बाबा ने संकेत से हरीश को अपने पास बुलाया। हरीश बाबा के एक ओर बैठ गया।

बाबा बोले –‘आज यह अंधेरा कैसा रामू?’

‘ओह! साँझ हो गई।’ रामू ने उत्तर देते हुए बत्ती का बटन दबाया – कमरे में प्रकाश हो गया।

‘खिड़कियाँ भी बंद कर रखी हैं।’ बाबा बोले।

‘बाहर कुछ आंधी को जोर है और जाड़ा भी अधिक है।’

‘खोल दो रामू! कभी-कभी यह आंधी और तूफान भी कितने भले मालूम होते हैं।’

रामू ने डॉक्टर की ओर देखा – डॉक्टर ने खोलने का संकेत किया तो रामू ने तुरंत ही बाहर वाली खिड़की खोल दी। तूफान का जोर बढ़ रहा था। हवा में तेजी के कारण खिड़की के किवाड़ आपस में टकराने लगे। बाबा की दृष्टि उन किवाड़ो पर और फिर सामने खड़े लोगों पर पड़ी। सबने देखा – बाबा के मुख पर एक अजीब-सी स्थिरता छा गई। देखते ही देखते सबके चेहरे की हवाईयाँ उड़ने लगीं। पार्वती धीरे से बाबा के पास बैठ गई केशव और रामू भी बाबा के समीप हो गए। डॉक्टर जरा हटकर इंजेक्शन की तैयारी करने लगा।

‘पार्वती बेटा, केशव काका जादूगर हैं – देखा, तुझे रोती को झट चुप करा दिया।’ बाबा के शब्द बहुत धीमे स्वर में निकल रहे थे।

‘हाँ बाबा।’

‘जहाँ मैंने इसे पाल-पोसकर बड़ा किया वहाँ केशव ने इसे गुणों से सजाया है। मेरे बाद केशव काका को अपने बाबा से कम न समझना।’

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