ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘काम पर जाते समय पहले मेरे दफ्तर में मिल लेना।’
‘बहुत अच्छा।’ राजन ने उत्तर दिया।
हरीश के चले जाने पर राजन चिंता में पड़ गया कि ऐसी क्या बात थी जिसके लिए उसे बुलाया गया है और वह विचारता हुआ सामने बैठी पार्वती को देखने लगा जो अब तक एक मूर्ति के समान बैठी थी।
‘पार्वती स्नान कर लो।’ केशव ने पार्वती से कहा।
‘आप पहले कर लें, क्योंकि आपको मंदिर जाना होगा।’
‘मैं तो नदी पर....’
‘नदी पर क्या जाना है, पूजा का समय हो चुका है।’
‘अच्छा तो।’
यह कहते हुए उठकर केशव स्नान के लिए चला गया। राजन और पार्वती एक-दूसरे को चुपचाप देख रहे थे। राजन कुछ कहना चाहता था परंतु शब्द उसकी जिह्वा तक ही आकर रुक जाते। थोड़ी देर बाद वह बोला- ‘पार्वती, यह सब कैसे हुआ?’
‘भगवान के किए में मनुष्य का क्या वश है।’
‘मुझे साँझ को सूचित कर दिया होता, आखिर मैं भी तो कुछ था।’
‘यहाँ अपना ही होश किसे था जो किसी को सूचित करती।’
‘अंतिम बार बाबा के दर्शन तो हो जाते।’
पार्वती चुप हो गई। राजन ने भी कुछ न कहा, चुपके से उठकर चल दिया।
‘जा रहे हो?’
‘हाँ पार्वती! काम पर देरी हो रही है। क्या तुम अब यहाँ अकेली रहोगी?’
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