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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


चन्दर कुछ कहना चाहता था...लेकिन क्या? कुछ था, जो न जाने कब से संचित होता आ रहा था, जो वह व्यक्त करना चाहता था, लेकिन सुधा कैसी हो गयी है! यह वह सुधा तो नहीं जिसके सामने वह अपने को सदा व्यक्त कर देता था। कभी संकोच नहीं करता था, लेकिन यह सुधा कैसी है अपने में सिमटी-सकुची, अपने में बँधी-बँधायी, अपने में इतनी छिपी हुई कि लगता था दुनिया के प्रति इसमें कहीं कोई खुलाव ही नहीं। चन्दर के मन में जाने कितनी आवाजें तड़प उठीं लेकिन...कुछ नहीं बोल पाया। वह बरामदे में ठिठक गया, निरुद्देश्य। वहाँ अपनी किताबें खोलकर देखने लगा, जैसे वह याद करना चाहता था कि कहीं भूल तो नहीं आया है कुछ लेकिन उसके अन्तर्मन में केवल एक ही बात थी। सुधा कुछ तो बोले। यह इतना गहरा, इतनी घुटनवाला मौन, यह तो जैसे चन्दर के प्राणों पर घुटन की तरह बैठता जा रहा था। सुधा...निर्वात निवास में दीपशिखा-सी अचल, निस्पन्द, थमे हुए तूफान की तरह मौन। चन्दर ने अन्त में नोट्स लिए, घड़ी देखी और चल दिया। जब वह सीढ़ी तक पहुँचा तो सहसा सुधा की छायामूर्ति में हरकत हुई। सुधा ने पाँव के अँगूठे से फर्श पर एक लकीर खींचते हुए नीचे निगाह झुकाये हुए कहा, “कितनी देर में आओगे?” चन्दर रुक गया। जैसे चन्दर को सितारों का राज मिल गया हो। सुधा भला बोली तो! लेकिन, फिर भी अपने मन का उल्लास उसने जाहिर नहीं होने दिया, बोला, “कम-से-कम दो घंटे तो लगेंगे ही।”

सुधा कुछ नहीं बोली, चुपचाप रह गयी। चन्दर ने दो क्षण प्रतीक्षा की कि सुधा अब कुछ बोले लेकिन सुधा फिर भी चुप। चन्दर फिर मुड़ा। क्षण-भर बाद सुधा ने पूछा, “चन्दर, और जल्दी नहीं लौट सकते?”

जल्दी! सुधा अगर कहे तो चन्दर जाये भी न, चाहे उसे इस्तीफा देना पड़े। क्या सुधा भूल गयी कि चन्दर के व्यक्तित्व पर अगर किसी का शासन है तो सुधा का! वह जो अपनी जिद से, उछलकर, लडक़र, रूठकर चन्दर से हमेशा मनचाहा काम करवाती रही है...आज वह इतनी दीनता से, इतनी विनय से, इतने अन्तर और इतनी दूरी से क्यों कह रही है कि जल्दी नहीं लौट सकते? क्यों नहीं वह पहले की तरह दौडक़र चन्दर का कॉलर पकड़ लेती और मचलकर कहती, 'ए, अगर जल्दी नहीं लौटे तो...' लेकिन अब तो सुधा बरामदे में खड़ी होकर गम्भीर-सी, डूबती हुई-सी आवाज में पूछ रही है-जल्दी नहीं लौट सकते! चन्दर का मन टूट गया। चन्दर की उमंग चट्टान से टकराकर बिखर गयी...उसने बहुत भारी-सी आवाज में पूछा, “क्यों?”

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