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ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


“जल्दी लौट आते तो पूजा करके तुम्हारे साथ नाश्ता कर लेते! लेकिन अगर ज्यादा काम हो तो रहने दो, मेरी वजह से हरज मत करना!” उसने उसे ठण्डे, शिष्ट और भावहीन स्वर में कहा।

हाय सुधा! अगर तुम जानती होती कि महीनों उद्भ्रान्त चन्दर का टूटा और प्यासा मन तुमसे पुराने स्नेह की एक बूँद के लिए तरस उठा है तो भी क्या तुम इसी दूरी से बातें करती! काश, कि तुम समझ पाती कि चन्दर ने अगर तुमसे कुछ दूरी भी निभायी है तो उससे खुद चन्दर कितना बिखर गया है। चन्दर ने अपना देवत्व खो दिया है, अपना सुख खो दिया है, अपने को बर्बाद कर दिया है और फिर भी चन्दर के बाहर से शान्त और सुगठित दिखने वाले हृदय के अन्दर तुम्हारे प्यार की कितनी गहरी प्यास धधक रही है, उसके रोम-रोम में कितनी जहरीली तृष्णा की बिजलियाँ कौंध रही हैं, तुमसे अलग होने के बाद अतृप्ति का कितना बड़ा रास्ता उसने आग की लपटों में झुलसते हुए बिताया है। अगर तुम इसे समझ लेती तो तुम चन्दर को एक बार दुलारकर उसके जलते हुए प्राणों पर अमृत की चाँदनी बिखेरने के लिए व्यग्र हो उठती; लेकिन सुधा, तुमने अपने बाह्य विद्रोह को ही समझा, तुमने उस गम्भीर प्यार को समझा ही नहीं जो इस बाहरी विद्रोह, इस बाहरी विध्वंस के मूल में पयस्विनी की पावन धारा की तरह बहता जा रहा है। सुधा, अगर तुम एक क्षण के लिए इसे समझ लो...एक क्षण-भर के लिए चन्दर को पहले की तरह दुलार लो, बहला लो, रूठ लो, मना लो तो सुधा चन्दर की जलती हुई आत्मा, नरक चिताओं में फिर से अपना गौरव पा ले, फिर से अपनी खोयी हुई पवित्रता जीत ले, फिर से अपना विस्मृत देवत्व लौटा ले...लेकिन सुधा, तुम बरामदे में चुपचाप खड़ी इस तरह की बातें कर रही हो जैसे चन्दर कोई अपरिचित हो। सुधा, यह क्या हो गया है तुम्हें? चन्दर, बिनती, पम्मी सभी की जिंदगी में जो भयंकर तूफान आ गया है, जिसने सभी को झकझोर कर थका डाला है, इसका समाधान सिर्फ तुम्हारे प्यार में था, सिर्फ तुम्हारी आत्मा में था, लेकिन अगर तुमने इनके चरित्रों का अन्तर्निहित सत्य न देखकर बाहरी विध्वंस से ही अपना आगे का व्यवहार निश्चित कर लिया तो कौन इन्हें इस चक्रवात से खींच निकालेगा! क्या ये अभागे इसी चक्रवात में फँसकर चूर हो जाएँगे...सुधा...

लेकिन सुधा और कुछ नहीं बोली। चन्दर चल दिया। जाकर लगा जैसे कॉलेज के परीक्षा भवन में जाना भी भारी मालूम दे रहा था। वह जल्दी ही भाग आया।

हालाँकि सुधा के व्यवहार ने उसका मन जैसे तोड़-सा दिया था, फिर भी जाने क्यों वह अब आज सुधा को एक प्रकाशवृत्त बनकर लपेट लेना चाहता था।

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