ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
इतने में सुधा आयी और बोली, “देखिए, अटैची सँवार दी है, आप भी देख लीजिए...” कैलाश उठकर चला गया। चन्दर बैठा-बैठा सोचने लगा-कैलाश कितना अच्छा है, कितना साफ और स्वच्छ दिल का है! लेकिन सुधा ने अपने को किस तरह मिटा डाला...
इतने में सुधा आयी और चन्दर से बोली, “चन्दर! चलो, वो बुला रहे हैं!”
चन्दर चुपचाप उठा और अन्दर गया। कैलाश ने तब तक यात्रा के कपड़े पहन लिये थे। देखते ही बोला, “अच्छा चन्दर, मैं चलता हूँ। कल शाम तक आ जाने की कोशिश करूँगा। हाँ देखो, ज्यादा घुमाना मत। इनकी सखी को यहाँ बुलवा लो तो अच्छा।” फिर बाहर निकलता हुआ बोला, “इनकी जिद थी आने की, वरना इनकी हालत आने लायक नहीं थी। माताजी से मैं कह आया हूँ कि लखनऊ मेडिकल कॉलेज ले जा रहा हूँ।”
कैलाश कार पर बैठ गया। फिर बोला, “देखो चन्दर, दवा इन्हें दे देना याद से, वहीं रखी है।” कार स्टार्ट हो गयी।
चन्दर लौटा। बरामदे में सुधा खड़ी थी। चुपचाप बुझी हुई-सी। चन्दर ने उसकी ओर देखा, उसने चन्दर की ओर देखा, फिर दोनों ने निगाहें झुका लीं। सुधा वहीं खड़ी रही। चन्दर ड्राइंग-रूम में जाकर किताबें वगैरह उठा लाया और कॉलेज जाने के लिए निकला। सुधा अब भी बरामदे में खड़ी थी। गुमसुम...
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