ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“कहना मत अपनी जबान से, स्वीकार कर लेने से पुरुष का गर्व टूट जाता है।...यही तो तुम्हारे चरित्र में मुझे प्यारा लगता है। खैर, यह ठीक हो जाएगा...! मैं तुम्हें ऐसे नहीं रहने दूँगी।”
“मसूरी में इतने दिन क्या करती रहीं?” चन्दर ने पूछा।
“योग-साधन!” पम्मी ने हँसकर कहा, “जानते हो, आजकल मसूरी में बर्फ पड़ रही है। मैंने कभी बर्फ के पहाड़ नहीं देखे थे। अँगरेजी उपन्यासों में बर्फ पड़ने का जिक्र सुना बहुत था। सोचा, देखती आऊँ। क्या कपूर! तुम खत क्यों नहीं लिखते थे?”
“मन नहीं होता था। अच्छा बर्टी की शादी कब होगी?” चन्दर ने बात टालने के लिए कहा।
“हो भी गयी। मैं आ भी नहीं पायी कि सुनते हैं जेनी एक दिन बर्टी को पकड़क़र खींच ले गयी और पादरी से बोली, 'अभी शादी करा दो।' उसने शादी करा दी। लौटकर जेनी ने बर्टी का शिकारी सूट फाड़ डाला और अच्छा-सा सूट पहना दिया। बड़े विचित्र हैं दोनों। एक दिन सर्दी के वक्त बर्टी स्वेटर उतारकर जेनी के कमरे में गया तो मारे गुस्से के जेनी ने सिवा पतलून के सारे कपड़े उतारकर बर्टी को कमरे से बाहर निकाल दिया। मैं तो जब से आयी हूँ, रोज नाटक देखती हूँ। हाँ, देखो यह तो मैं भूल ही गयी थी...” और उसने अपनी जेब से पीतल की एक छोटी-सी मूर्ति निकालकर मेज पर रखी-”एक भोटिया औरत इसे बेच रही थी। मैंने इसे माँगा तो वह बोली-यह सिर्फ मर्दों के लिए है।' मैंने पूछा, 'क्यों?' तो बोली-'इसे अगर मर्द पहन ले तो उस पर किसी औरत का जादू नहीं चलता। वह औरत या तो मर जाती है या भाग जाती है या उसका ब्याह किसी दूसरे से हो जाता है।' तो मैंने सोचा, तुम्हारे लिए लेती चलूँ।”
चन्दर ने देखा वह अवलोकितेश्वर की महायानी मूर्ति थी। उसने हँसकर उसे ले लिया फिर बोला, “और क्या लायी अपने लिए?”
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