ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“अपने लिए एक नया रहस्य लायी हूँ।”
“क्या?”
“इधर देखो, मेरी ओर, मैं सुन्दर लगती हूँ?”
चन्दर ने देखा। पम्मी अठारह साल की लड़की-सी लगने लगी है। चेहरे के कोने भी जैसे गोल हो गये थे और मुँह पर बहुत ही भोलापन आ गया था, आँखों में क्वाँरापन आ गया था, चेहरे पर सोना और केसर, चम्पा, हरसिंगार घुल-मिल गये थे।
“सचमुच पम्मी, लगता है जैसे कौमार्य लौट आया है तुम पर तो! परियों के कुंज से अपना बचपन फिर चुरा लायी क्या?”
“नहीं कपूर, यही तो रहस्य लायी हूँ, हमेशा सुन्दर बने रहने का और परियों के कुंजों से नहीं, गुनाहों के कुंजों से। मैंने हिमालय की छाँह में एक नया संगीत सुना कपूर, मांसलता का संगीत। मसूरी के समाज में घुल-मिल गयी और मादक अनुभूतियाँ बटोरती रही-बिना किसी पश्चात्ताप के और मैंने देखा कि दिनों-दिन निखरती जा रही हूँ। कपूर, सेक्स इतना बुरा नहीं जितना मैं समझती थी। तुम्हारी क्या राय है?”
“हाँ, मैं देख रहा हूँ, सेक्स लोगों को उतना बुरा नहीं लगता, जितना मैं समझता था।”
“नहीं चन्दर, सिर्फ इतना ही नहीं, अच्छा मान लो जैसे तुम आजकल उदास हो और तुम्हारा सिर इस तरह अपनी गोद में रख लूँ तो कुछ सन्तोष नहीं होगा तुम्हें?” और पम्मी ने चन्दर का सिर सचमुच अपने श्वासान्दोलित वक्ष से चिपका लिया। चन्दर झल्लाकर अलग हट गया। कैसी अजब लड़की है! थोड़ी देर चुप बैठा रहा, फिर बोला-
“क्यों पम्मी, तुम एक लड़की हो, मैं तुम्हीं से पूछता हूँ-क्या लड़कियों के प्रेम में सेक्स अनिवार्य है?”
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