लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

305 पाठक हैं

संवेदनशील प्रेमकथा।


“अजी नहीं, आपका मुख-मंडल देखकर तो आकाश में चन्द्रमा भी लज्जित हो जाता होगा, श्रीमती बिनती विदुषी!” चन्दर ने हँसकर कहा। आज चन्दर बहुत खुश था।

बिनती लजा गयी और फिर उसके गालों में फूल के कटोरे खिल गये और उसने चन्दर के कन्धे से फिर सूई चुभोकर कहा, “आपको एक बड़े मजे की बात बतानी है आज!”

“क्या?”

“फिर हँसिएगा मत! और चिढ़ाइएगा नहीं!” बिनती बोली।

“कुछ तेरे ब्याह की बात होगी!” चन्दर ने कहा।

“नहीं, ब्याह की नहीं, प्रेम की!” बिनती ने हँसकर कहा और झेंप गयी।

“अच्छा, गिलहरी को यह रोग कब सेï?” चन्दर ने हँसकर पूछा, “अपनी माँजी की शकल देखी है न, काटकर कुएँ में फेंक देंगी तुझे!”

“अब क्या करें, कोई सिर पर प्रेम मढ़ ही दे तो!” बिनती ने बड़े आत्मविश्वास से कहा। थी बड़ी खुले स्वभाव की लड़की।

“आखिर कौन अभागा है वह! जरा नाम तो सुनें।” चन्दर बोला।

“हमारे महाकवि मास्टर साहब।” बिनती ने हँसकर कहा।

“अच्छा, यह कब से! तूने पहले तो कभी बताया नहीं।”

“अब तो जाकर हमें मालूम हुआ। पहले सोचा दीदी को लिख दें। फिर कहा वहाँ जाने किसके हाथ में चिठ्ठी पड़े। तो सोचा तुम्हें बता दें!”

“हुआ क्या आखिर?” चन्दर ने पूछा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book