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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


उसे ऐसा लगा जैसे सुधा की यह दूरी, यह अलगाव सभी कुछ झूठ है। सच तो वे सुनहले दिन थे जो सुधा की शरारतों से मुसकराते थे, सुधा के दुलार में जगमगाते थे। और कुछ भी हो जाये, सुधा उसके जीवन का एक ऐसा अमर सत्य है जो कभी भी डगमगा नहीं सकता। अगर वह उदास होता है, दु:खी होता है तो वह गलत है। वह अपने ही आदर्श को झूठा बना रहा है, अपने ही सपने का अपमान कर रहा है। और उसी दिन सुधा का खत भी आया जिसमें सुधा ने साफ-साफ तो नहीं पर इशारे से लिखा था कि वह चन्दर के भरोसे ही किसी तरह दिन काट रही थी। उसने सुधा को एक पत्र लिखा, जिसमें वही शरारत, वही खिझाने की बातें थीं जो वह हमेशा सुधा से करता था लेकिन जिसे वह पिछले तीन महीने में भूल गया था।

उसके बाद वह बिनती के यहाँ गया।

बिनती अपनी धोती में क्रोशिया की बेल टाँक रही थी। “ले गिलहरी, तेरी दीदी का खत! लाओ, मिठाई खिलाओ।”

“हम काहे को खिलाएँ! आप खिलाइए जो खिले पड़े हैं आज!” बिनती बोली।

“हम! हम क्यों खिलाएँगे! यहाँ तो सुधा का नाम सुनते ही तबीयत कुढ़ जाती है!”

“अरे चलिए, आपका घर मेरा देखा है। मुझसे नहीं बन सकते आप!” बिनती ने मुँह चिढ़ाकर कहा, “आज बड़े खुश हैं!”

“हाँ, बिनती...” एक गहरी साँस लेकर चन्दर चुप हो गया, “कभी-कभी उदासी भी थक जाती है!” और मुँह झुकाकर बैठ गया।

“क्यों, क्या हुआ?” बिनती ने चन्दर की बाँह में सुई चुभो दी-चन्दर चौंक उठा। “हमारी शक्ल देखते ही आपके चेहरे पर मुहर्रम छा जाता है!”

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