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ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
पम्मी ने आलमारी से एक किताब उठायी और एक कविता गाना शुरू की-अपनी हेयर पिन निकालकर मेज पर रख दी और उसके बाल मचलने लगे। चन्दर के कन्धे से वह टिककर बैठ गयी और किताब चन्दर की गोद में रख दी। बिनती मुसकरायी तो सुधा ने आँख के इशारे से मना कर दिया। पम्मी ने गाना शुरू किया, लेडी नार्टन का एक गीत-
मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ न!
मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ।
फिर भी मैं उदास रहती हूँ
जब तुम पास नहीं होते हो!
और मैं उस चमकदार नीले
आकाश से भी ईर्ष्या करती हूँ
जिसके नीचे तुम खड़े होगे और
जिसके सितारे तुम्हें देख सकते हैं
चन्दर ने पम्मी की ओर देखा। सुधा ने अपने ही वक्ष में अपना सिर छुपा लिया। पम्मी ने एक पद समाप्त कर एक गहरी साँस ली और फिर शुरू किया-
“मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ-
फिर भी तुम्हारी बोलती हुई आँखें;
जिनकी नीलिमा में गहराई,
चमक और अभिव्यक्ति है-
मेरी निर्निमेष पलकों और जागते अर्धरात्रि के
आकाश में नाच जाती हैं!
और किसी की आँखों के बारे में
ऐसा नहीं होता...”
सुधा ने बिनती को अपने पास खींच लिया और उसके कन्धे पर सिर टेककर बैठ गयी। पम्मी गाती गयी-
“न मुझे मालूम है कि
मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ,
लेकिन फिर भी,
कोई शायद मेरे साफ दिल पर
विश्वास नहीं करेगा।
और अकसर मैंने देखा है,
कि लोग मुझे देखकर मुसकरा देते हैं
क्योंकि मैं उधर एकटक देखती हूँ,
जिधर से तुम आया करते हो!”
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