ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
गीत का स्वर बड़े स्वाभाविक ढंग से उठा, लहराने लगा, काँप उठा और फिर धीरे-धीरे एक करुण सिसकती हुई लय में डूब गया। गीत खत्म हुआ तो सुधा का सिर बिनती के कंधे पर था और चन्दर का हाथ पम्मी के कन्धे पर।
चन्दर थोड़ी देर सुधा की ओर देखता रहा फिर पम्मी की एक हल्की सुनहरी लट से खेलते हुए बोला, “पम्मी, तुम बहुत अच्छा गाती हो!”
“अच्छा? आश्चर्यजनक! कहो चन्दर, पम्मी इतनी अच्छी है यह तुमने कभी नहीं बताया था, हमें फिर कभी सुनाइएगा?”
“हाँ, हाँ मिस शुक्ला! काश कि बजाय लेडी नार्टन के यह गीत आपने लिखा होता!”
सुधा घबरा गयी, “चलो। चन्दर, चलें अब! चलो।” उसने चन्दर का हाथ पकडक़र खींच लिया-”मिस पम्मी, अब फिर कभी आएँगे। आज मेरा मन ठीक नहीं है।”
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