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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


“आज आप बहुत पीली नजर आती हैं!” पम्मी ने पूछा।

“हाँ, कुछ मन नहीं लग रहा था तो मैं आपके पास चली आयी कि आपसे कुछ कविताएँ सुनूँ, अँगरेजी की। दोपहर को मैंने कविता पढऩे की कोशिश की तो तबीयत नहीं लगी और शाम को लगा कि अगर कविता नहीं सुनूँगी तो सिर फट जाएगा।” सुधा बोली।

“आपके मन में कुछ संघर्ष मालूम पड़ता है, या शायद...एक बात पूछूँ आपसे?”

“क्या, पूछिए?”

“आप बुरा तो नहीं मानेंगी?”

“नहीं, बुरा क्यों मानूँगी?”

“आप कपूर को प्यार तो नहीं करतीं? उससे विवाह तो नहीं करना चाहतीं?”

“छिः, मिस पम्मी, आप कैसी बातें कर रही हैं। उसका मेरे जीवन में कोई ऐसा स्थान नहीं। छिः, आपकी बात सुनकर शरीर में काँटे उठ आते हैं। मैं और चन्दर से विवाह करूँगी! इतनी घिनौनी बात तो मैंने कभी नहीं सुनी!”

“माफ कीजिएगा, मैंने यों ही पूछा था। क्या चन्दर किसी को प्यार करता है?”

“नहीं, बिल्कुल नहीं!” सुधा ने उतने ही विश्वास से कहा जितने विश्वास से उसने अपने बारे में कहा था।

इतने में चन्दर और बिनती आ गये। सुधा बोली अधीरता से, “मेरा एक-एक क्षण कटना मुश्किल हो रहा है, आप शुरू कीजिए कुछ गाना!”

“कपूर, क्या सुनोगे?” पम्मी ने कहा।

“अपने मन से सुनाओ! चलो, सुधा ने कहा तो कविता सुनने को मिली!”

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