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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564
आईएसबीएन :9781613013137

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

‘तो तुम कहना चाहते हो कि मैं झूठ कह रहा हूं।’

‘यदि तुम्हें अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं तो मेरी बातों पर तुम्हें किस प्रकार विश्वास आएगा। जाओ, बाहर अस्तबल के पास लिली घोड़े लिए खड़ी है। आज मैं न आ सकूंगा।’

लिली का नाम सुनते ही दीपक आवेश में भरा बाहर निकल गया और शंकर चारपाई पर बैठ गया। उसे ऐसा लग रहा था मानों उसके शरीर में जान ही न हो। उसके दीपक पर क्रोध था परंतु साथ ही तरस भी। उसने सोचा कि शांत होने पर वह दीपक को समझाएगा। थोड़ी ही देर में टॉम दौड़ा हुआ अंदर आया। उसके मुंह पर हवाइयां उड़ रही थी।

‘क्यों टॉम, क्या बात है?’ शंकर ने जल्दी से उठते हुए पूछा।

‘साहब दीपक बाबू ने काला घोड़ा सवारी के लिए ले लिया।’

‘तुमने खोलने क्यों दिया?’ कहता-कहता शंकर भागा हुआ अस्तबल के निकट पहुंचा। काले घोड़े पर लिली सवार थी और दीपक ने उसे पकड़ रखा था। शंकर ने पास पहुंचते ही कहा, ‘दीपक यह क्या कर रहे हो?’

‘लिली की परीक्षा, इतने दिनों में कितनी घुड़सवारी सीखी है?’

‘परंतु यह घोड़ा।’

लिली यह सुनकर घबराई और घोड़े को उसने मजबूती से पकड़ लिया। दीपक उसे घबराया देखकर बोला, ‘लिली, घबराओ नहीं, अभी जवान हो और एक मस्त घोड़े पर बैठकर तो और भी सुंदर जान पड़ती हो।’

‘हो क्या गया है तुम्हे दीपक? छोड़ दो इसे।’ शंकर ने घोड़े की लगाम पकड़ते हुए कहा।

‘तुम जानते हो कि जब जवानी के मद में कोई अंधा हो जाता है तो उसका क्या परिणाम होता है?’ दीपक ने शंकर को जोर से धक्का देकर अलग कर दिया और बोला, ‘लो देखो।’

यह कहते ही उसने जोर से घोड़े तो चाबुक लगाई और छोड़ दिया। थोड़ी ही देर में घोड़ा हवा से बातें करने लगा। लिली ने जोर से घोड़े के बालों को पकड़ लिया।

‘दीपक!’ शंकर जोर से चिल्लाया और कूदकर दूसरे घोड़े पर सवार हो गया। वह भी काले घोड़े का पीछा करने लगा। दोनों घोड़े सरपट दौड़ रहे थे। लिली के चिल्लाने की आवाज अभी तक दीपक के कानों में आ रही थी। टाख...टाख... घोड़ों की टापें मैदान की पथरीली जमीन पर एक शोर-सा मचा रही थी। दीपक की नजरें दोनों घोड़ों की ओर लगी थीं। बहुत दूर तक भी शंकर लिली का घोड़ा न पकड़ सका।

थोड़ी ही देर बाद दीपक ने लिली को घोड़े से गिरते देखा। शायद वह किसी गड्ढे में जा गिरी थी। काला घोड़ा वहीं रुक गया था और नीचे गड्ढे में देखने लगा था। शंकर भी वहां पहुंचा और घोड़े से उतरकर उसी गड्ढे में उतर गया।

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