ई-पुस्तकें >> घाट का पत्थर घाट का पत्थरगुलशन नन्दा
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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।
‘जहां आपने मुझे गिरते हुए बचाया है, वहां एक वचन आपसे लेना चाहती हूं।’
‘क्या?’
‘कि यह बात दीपक के कानों तक न पहुंचे।’
‘एक शर्त पर।’
‘कैसी शर्त?’
‘कि भविष्य में एक सच्ची गृहिणी की भांति अपने पति की प्रसन्नता और शांति के लिए प्राण भी दे दोगी।’
‘प्रयत्न करूंगी।’
‘भगवान तुम्हारे साथ है लिली। जाओ सो जाओ। तुम्हारी थकी हुई आंखों को आराम की आवश्यकता है।’
‘और आप?’
‘मेरे लिए चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं।’
लिली अपने कमरे की ओर बढ़ी। दरवाजे में रुककर उसने मुड़कर शंकर से पूछा, ‘क्या सवेरे की घुड़सवारी पर चलिएगा?’
‘अवश्य। क्यों नहीं?’
लिली ने एक बार फिर शंकर के मुख की ओर देखा और अंदर चली गई।
सवेरा होते ही शंकर और लिली शंकर के मकान की ओर चल पड़े। कुसुम अभी तक सो रही थी। उसे लिली ने हरिया को सौंप दिया। थोड़ी ही देर में दोनों निचले मैदान में पहुंच गए। शंकर लिली से बोला, ‘तुम सामने अस्तबल में जाकर टॉम से कहो कि घोड़े तैयार करे और मैं कपड़े बदलकर अभी आता हूं।’ शंकर मुंह से सीटी बजाता हुआ अपने मकान में प्रविष्ट हुआ और नौकर को आवाज देकर अपने कमरे में गया। उसे लगा मानों कोई व्यक्ति उसके बिस्तर पर लिहाफ ओढ़े सो रहा है। केवल उसके पांव बाहर थे जिनमें जूते थे। पास आकर उसने देखा और जल्दी से लिहाफ उठाते हुए पूछा, ‘कौन?’
‘उसके आश्चर्य की सीमा न रही। दीपक सो रहा था।’ दीपक ने धीरे-से अपनी आंखें खोली और बोला, ‘आइए शंकर बाबू, क्षमा करना।! आपके बिस्तर पर सो गया था....।’
‘परंतु तम तो....।’
‘रात की बारिश और तूफान के कारण हम न जा सके। नदी में बाढ़ आ गई थी इसलिए लौट आए।’
‘परंतु घर वापस क्यों नहीं गए?’
‘मैंने सोचा कि तुम्हारे घर की चौकीदारी भी तो किसी ने करनी है और तुम मेरी हवेली पर पहरा दे रहे थे तो मैंने यहां की चौकीदारी करना ही अपना कर्त्तव्य समझा।’
‘दीपक किसी गलतफहमी में न पड़ो।’
‘शंकर।’ दीपक ने गरजकर कहा, ‘मैंने तुम्हें संदेश पहुंचाने के लिए कहा था, वहां रात को आराम करने के लिए नहीं।’
‘परंतु मेरी बात तो सुनो।’
‘यहीं न कि वर्षा और तूफान के कारण लिली ने तुम्हें वहां रहने के लिए विवश कर दिया?’
‘नहीं।’
‘तो फिर?’
‘लिली को हवेली में अकेला छोड़ना मैंने उचित नहीं समझा।’
‘यह क्यों नहीं कहते कि लिली के प्रेम ने पैरों में बेड़ियां डाल दीं।’
‘दीपक, होश में हो। संसार का प्रत्येक व्यक्ति उतना नीच नहीं जितना तुम समझते हो।’
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