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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564
आईएसबीएन :9781613013137

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

‘अपना हाथ-मुंह धो लीजिए। खाना तैयार है।’ लिली ने कहा।

‘मैं तुमसे कुछ कह रहा हूं?’

‘व्यर्थ छोटी-छोटी बातों को कुरेदना भी मैं अच्छा नहीं समझती। यदि आप नहीं चाहते तो मैं सवारी के लिए नहीं जाऊंगी।’

‘वह तो अब हमें जाना ही होगा।’

‘ऐसी भी क्या विवशता है?’

‘मैं तो केवल यह चाहता हूं कि शंकर के बजाय तुमने मुझसे कहा होता।’

‘अच्छा उठिए। बातों के लिए सारी रात पड़ी है।’

‘दूसरे दिन सवेरे शंकर घोड़े पर सवार हाथ में दो सवारी के घोड़े लिए हवेली के बाहर आ पहुंचा। दीपक तैयार ही था। लिली अभी भी तैयार न थी।’

लिली के सुनहरे विचारों का तांता दीपक की आवाज ने तोड़ दिया।

‘आ रही हूं।’ यह कहते हुए लिली शीघ्रता से बाहर आई और हरिया से बोली, ‘जरा मुन्नी का ध्यान रखना।’

तीनों अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर सैर के लिए चल दिए।

शंकर इसी प्रकार नित्य उनके घर पहुंच जाता और तीनों प्रतिदिन सैर के लिए निकल जाते।

एक दिन संध्या के समय जबकि शंकर कमरे में बैठा पत्र लिख रहा था, तो उसे दरवाजे पर किसी के पैरों की आहट-सी सुनाई दी और दीपक ने अंदर प्रवेश किया। शंकर उसे देखते ही बोला, ‘आओ दीपक।’ और वह कुर्सी छोड़ पलंग पर जा बैठा। कुर्सी उसने दीपक को बैठने के लिए दे दी।

दीपक ने कहा, ‘शंकर जल्दी में हूं। मेरे पास बैठने का समय नहीं।’

‘ऐसी भी क्या जल्दी है?’

‘मैं पास ही के गांव में एक आवश्यक काम से जा रहा हूं। चुंगी वालों ने मेरी बैलगाड़ियां रोक रखी हैं और ऊपर से बरसात का मौसम, रास्ते में सामान कहीं खराब न हो जाए।’

‘तो फिर?’

‘मेरे पास ऊपर जाने के लिए समय नहीं। जरा लिली को सूचना दे देना कि दरवाजे आदि भली प्रकार से बंद कर ले। मैं कल दोपहर तक लौट आऊंगा?’

‘अच्छा कह दूंगा और कुछ काम मेरे योग्य हो तो....।’

‘बस यही बहुत है। अच्छा मैं चलता हूं।’ यह कहकर दीपक बाहर निकल गया। शंकर ने जल्दी-जल्दी पत्र समाप्त किए और बरसाती उठाकर दीपक की हवेली की ओर जाने के लिए बाहर निकला।

शंकर हवेली की ड्योढ़ी पर पहुंचा ही था कि वर्षा आरंभ हो गई। बरामदे में लिली खड़ी दीपक की प्रतीक्षा कर रही थी। शंकर को देखते ही बोली, ‘क्यों दीपक कहां है? वह साथ नहीं आए?’

‘वह पास के गांव में एक आवश्यक काम से गए हैं और कल दोपहर तक लौटेंगे। समय कम होने के कारण मुझे यह संदेश पहुंचाने को कह गए थे।’

‘और कुछ...?’

‘हां, उसने कहा था कि हवेली के दरवाजे अच्छी तरह बंद कर लेना और चौकीदार को भी सावधान कर देना।’

‘उनका विचार है कि अकेली मैं डरती हूं।’ उसने हंसते हुए कहा।

‘फिर भी नारी हो, डरना तो हुआ।’

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