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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564
आईएसबीएन :9781613013137

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं। अकेला मनुष्य जाए भी कहां और घोड़े भी तो अच्छे नहीं मिलते।’

‘तो आप कभी हमारे यहां पधारिए। एक से एक अच्छी जाति का घोड़ा मौजूद है और पहाड़ियों में घुड़सवारी को छोड़कर और कौन सा मनोरंजन हो सकता है?’

‘देखिए, प्रयत्न करूंगी।’

इतने में दीपक वहां आ पहुंचा और कुर्सी पर बैठते हुए बोला, ‘क्यों, अभी चाय नहीं आई?’

‘वह सामने ला ही रहा है।’ लिली ने उत्तर दिया।

हरिया ने अपने स्वामी की आवाज सुनते ही शीघ्रता से चाय लाकर मेज पर रख दी। सब मिलकर चाय पीने लगे।‘’

जब शंकर लाल वापस जाने को तैयार हुआ तो लिली के बहुत अनुरोध करने पर उसे रात के खाने तक रुकना पड़ा। बहुत समय तक गपशप होती रही। खाने में कुछ देर थी तो शंकर लाल के कहने पर सब सड़क तक घूमने चले गए। लिली को आज ऐसा जान पड़ा मानों शंकर लाल का आना बसंत का आगमन है। इन सूने जंगलों में एक भी तो ऐसा मनुष्य नहीं जिससे मेलजोल बढ़ाया जाए।

धीरे-धीरे शंकर उनके घर आने लगा। दीपक का तो वह बहुत गहरा मित्र बन गया और लिली का समय बिताने का साधन। वह लिली को भांति-भांति की मनोरंजक बातें सुनाकर प्रसन्न करता। एक दिन शंकर लिली के घर आया तो दीपक घर पर न था। वह लिली के पास ही बैठकर बातें करने लगा। लिली ने चाय के लिए पूछा। शंकर बोला, ‘लिली अगर हो सके तो ठंडा पानी मंगवा दो। गर्मी बहुत है और चाय पीने को जी नहीं चाहता।’

‘इसमें कौन-सी बात है? अभी लो।’ यह कहकर लिली अंदर गई और थोड़ी देर में शर्बत बनाकर ले आई।

‘इसकी क्या आवश्यकता थी?’ शंकर ने देखते ही कहा।

‘ठंडा पानी ही तो है, पीजिए।’ उसने गिलास आगे करते हुए उत्तर दिया। शंकर ने गिलास ले लिया और बोला, ‘और आप?’

‘मैं तो चाय ही पीऊंगी। अभी आती हूं।’

शंकर एक ही सांस में सारा शर्बत पी गया, जैसे बहुत देर से प्यासा हो। लिली उसके मुंह की ओर देखती रही।

‘क्या बात है, दीपक अभी तक नहीं आया।’

‘कहीं गए हैं। कह रहे थे पास के गांव में कुछ काम है, शायद देर से लौटूं।’

‘लिली, तुम दोनों बहुत भाग्यवान हो।’

‘कैसे?’

‘एक-दूसरे को पाकर।’

‘तो वह कितनी भाग्यवान है जिसे तुम्हारे जैसा पति मिला है?’

वह सुनते ही शंकर जोर से हंसा और बोला, ‘आपने भी खूब कही।’

‘तो क्या मैंने कुछ गलत कहा?’

‘अजी, अभी तो मैं अकेला ही हूं।’

‘ओह! तो यह बात है! तो कब लाइएगा भाभी को?’

‘जब कोई पसंद आएगी।’

‘अच्छा मैं भी तो सुनूं, कैसी चाहिए?’

‘यह तो एक बहुत टेढ़ा प्रश्न है।’

‘फिर भी, कुछ तो सोच रखा होगा आपने?’

‘यदि बुरा न मानों तो कहूं।’

‘हां कहो ना।’

‘मुझे तो ऐसी लड़की चाहिए जो आप जैसी सुंदर और सभ्य हो।’

लिली यह सुनकर सकुचा गई और धीरे से बोली, ‘आप क्या कीजिएगा ऐसी फीकी सुंदरता और सभ्यता को लेकर?’

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