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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564
आईएसबीएन :9781613013137

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

थोड़ी ही देर में लिली दीपक के पास आई और बोली, ‘मुझे तो अभी माला ने बताया कि तुम आ गए हो। समाचार भेज देते तो मोटर पहुंच जाती।’

‘कोई विशेष आवश्यकता तो थी नहीं, केवल एक अटैची साथ थी।’

‘तुम्हारे पिताजी की आकस्मिक मृत्यु से तो तुम्हें बहुत धक्का लगा होगा। यह सब कैसे हुआ?’

‘ईश्वर की इच्छा बड़ी प्रबल है।’

‘अच्छा अब मैं चलती हूं। सब प्रतीक्षा कर रहे होंगे।’ यह कहती हुई वह उछलती हुई कमरे से बाहर चली गई। दीपक ने जोर से दरवाजा बंद किया।

शीघ्र ही दीपक तैयार होकर बड़े कमरे में पहुंचा। एक अच्छी सभा-सी लग रही थी। लिली के सब मित्र व सहेलियां इकट्ठी थीं। सब मौन बैठे माला का गाना सुन रहे थे। वह धीरे से कमरे में आया। उसके आते ही माला गाते-गाते रुक गई और उसे निर्निमष नेत्रों से देखने लगी। गाना बंद होते ही सबने मुड़कर पीछे की ओर देखा। दीपक बहुत सुंदर दिखाई दे रहा था। लिली ने भी उसे देखा। दोनों की आंखें चार हुई। वह धीरे से लिली के पास आकर बैठ गया। माला ने फिर गाना शुरु कर दिया। लिली के एक ओर दीपक और दूसरी ओर सागर बैठा था। दोनों कभी-कभी एक दूसरे को देख लेते मानों दो शिकारी एक ही शिकार के लिए एक-दूसरे को देखते हों। दोनों के बीच में लिली मूर्ति की भांति बैठी थी और सामने माला की ओर देख रही थी। उसके मुख पर गंभीरता थी।

माला का गाना समाप्त होते ही सबने तालियां बजाई। आज उसके गीत में एक वेदना थी। गाने के बाद लिली ने दीपक का परिचय सब आने वालों से कराया। अनिल, जो बहुत देर से दीपक की ओर देख रहा था, उसका मौन भंग करने के लिए बोला, ‘क्यों जी, क्या बात है? कुछ खोए-खोए बैठे हो!’

‘मैं या आप सब लोग?’ इस पर सब जोर से हंस पड़े।

‘जान पड़ता है कि अभी तक इन भाई साहब को यह भी पता नहीं कि यह सभा क्यों लगी है।’ एक साहब बोले।

‘दीपक ने यह कहा, यह आप कैसे जान गए? सचमुच अभी तक मेरी समझ में नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है?’

‘तो आप यहां पहुंचे क्यों कर?’ अनिल ने पूछा।

‘किसी ने बुलाया, मैं चला आया।’

‘किसने?’

‘यहां ही थीं यही कहीं... वह रही।’ उसने लिली की ओर संकेत करते हुए कहा।

‘तो साहब, यह भी खूब रही। बुलाने वाले ने दावत पर बुला लिया और मेहमान आ भी गए। खाना-पीना आरंभ हो गया और मेहमानों को यह अभी तक नहीं पता कि दावत क्यों हो रही है?’ अनिल ने हंसते हुए कहा और सब जोर से हंसने लगे।

‘अगर मेहमानों को बताया ही न जाए तो इसमें उन बेचारों का क्या दोष?’ दीपक ने चाय का खाली प्याला मेज पर रखते हुए कहा।

‘तो आइए। मैं आपको बताए देता हूं।’ अनिल ने दीपक को सागर के सामने ले जाते हुए कहा, ‘इनको तो आप जानते ही होंगे?’

‘जी। इन्हें भला कौन नहीं जानता?’

और यह। उसने लिली की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘यह तो हमारी होस्ट है ही। बस इस होस्ट और गेस्ट ने आपस में समझौता कर लिया है।’

‘क्या?’

‘कि जीवन भर एक साथ रहेंगे और इस खुशी में यह पार्टी....।’

इतने में दीपक धीरे-धीरे चलकर लिली के समीप पहुंच गया और बोला, ‘चुनाव तो अच्छा है, यदि जीवन भर का साथ बन जाए तो।’ उसने यह कहते हुए सागर की ओर देखा। लिली ने पीछे से चुटकी ली। वह मौन हो गया और बात बदलकर बोला, ‘लिली यदि एक कप चाय और बना दो तो कृपा होगी।’

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