ई-पुस्तकें >> घाट का पत्थर घाट का पत्थरगुलशन नन्दा
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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।
‘आज से पहले अवश्य तुम्हारी इज्जत थी, परंतु जब तुम इतने गिर सकते हो कि इतनी रात गए अकेले यहां आकर मेरी बेइज्जती करने लग जाओ तो....’
‘यदि तुम आधी रात के समय चोरी से खिड़की फांदकर किसी से मिल सकती हो तो मेरे यहां आने में क्या आपत्ति हो सकती है?’
‘आधिक बातें बनाने की आवश्यकता नहीं, नहीं तो अभी डैडी को जगाती हूं। अपनी बेइज्जती अपने-आप ही कराओगे।’
‘मुझे धमकी देने की कोई आवश्यकता नहीं। तुम प्रसन्नता से उन्हें जगा सकती हो। मैं कोई चोरी करने के इरादे से नहीं आया, अपना अधिकार समझ कर आया हूं।’
‘कैसा अधिकार?’
‘तुम पर। सच बताओ लिली, सागर तुम्हें क्या दे सकता है जो मैं नहीं दे सकता?’
‘मुझसे बहस करने की आवश्यकता नहीं। मेरा इतना कह देना ही तुम्हारे लिए बहुत है कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करती।’
‘इसलिए कि मैं किसी बैरिस्टर का लड़का नहीं, इसलिए कि मेरे पास कोठी नहीं है और न ही घूमने के लिए कार है।’
‘जब यह समझते हो तो मेरा पीछा छोड़ दो।’
‘परंतु लिली, तुम्हें खरीदने के लिए क्या मेरा दिल पर्याप्त न था।’
‘यदि कोई ग्राहक किसी वस्तु का मूल्य न दे सके तो उसका विचार ही छोड़ देना चाहिए।’
‘तुम तो कहती थीं कि मैं रुपये से अधिक मनुष्य का आदर करती हूं। यह भी ध्यान रहे कि जिस वस्तु को मनुष्य अधिक पसंद करता है, वह उसे खरीदने की शक्ति न होने पर छीन लेता है।’
‘तो वह मनुष्य न होकर लुटेरा हुआ।’
‘कभी-कभी मनुष्य को लुटेरा बनना पड़ता है।’
‘तुम तो कहते थे कि तुम कोई गिरा हुआ मार्ग न अपनाओगे, जिससे तुम्हारे आचरण पर धब्बा आए।’
‘वह एक भ्रम था, यह एक वास्तविकता है।’
‘तो इसी प्रकार तुम्हारा प्रेम भी एक धोखा था?’
‘और अब तुम्हें पा लेने की धारणा वास्तविकता है।’
‘इसका भ्रम भी अपने मन से निकाल दो।’
‘तुम पर मेरा अधिकार है।’
‘असंभव है।’
‘तुम्हें मुझसे कोई छीन नहीं सकता।’
‘वह देखा जाएगा। अब आप कृपा करके बाहर चले जाइए।’
‘निराश होकर?’
‘तो ठहरिए, अभी बताती हूं।’ यह कहकर लिली ने दरवाजा खोला और बाहर जाने लगी।
‘कष्ट करने की आवश्यकता नहीं है, डैडी अपने बिस्तर पर नहीं है।’
‘कहां है?’ लिली ने आश्चर्य से पूछा।
‘रात को वापस नहीं आए, टेलीफोन आया था कि एक मित्र के घर ठहर गए हैं।’
‘क्यों?’
‘शहर में कर्फ्यू लग जाने के कारण।’
‘अब समझी कि तुममें इतना साहस कैसे हुआ।’
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