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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564
आईएसबीएन :9781613013137

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

कार पक्की सड़क पर भागने लगी। वह अपनी पूरी गति पर जा रही थी। दीपक मौन था। बहुत देर सन्नाटे के बाद माला बोली-

‘क्यों जी, मौन क्यों हो? चेहरे पर उदासी सी छा रही है।’

‘नहीं तो।’ उसने फीकी हंसी हंसते हुए कहा।

‘अकेले जा रहे हो इसलिए? मैं तो तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने भी आ गई।’

‘इसके लिए हार्दिक धन्यवाद! माला एक बात पूछूं?’

‘अवश्य।’

‘आते समय लिली ने मुझसे जो बात कही उसका क्या मतलब था?’

माला हंस पड़ी और बोली, ‘भई, इतना भी नहीं समझते। इसका मतलब यह था कि डैडी को इस बात का पता चल गया तो वह अवश्य बिगड़ेंगे। वह तो उनसे कहकर आई है कि कुछ सहेलियों के साथ जा रही है और यहां सहेलियों के साथ कुछ मित्र भी हैं।’

‘तुम्हारा मतलब यह है कि लिली ने सागर को बुलाया था।’

‘प्रोग्राम तो उन सबने ही बनाया था, मेरी तो केवल सेवाएं ही स्वीकार की गई थीं। यदि डैडी को पहले पता चल जाता कि सागर आदि साथ हैं तो वह शायद लिली को न भेजते।’

‘मतलब यह कि लिली डैडी की दी हुई स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रही है।’

‘अरे करे भी क्या? आजकल के बड़े-बूढ़े अपनी लड़कियों का इस प्रकार अपने मित्रों के साथ मिलना, हंसना-खेलना पसंद कर सकते हैं?’

‘कभी नहीं! परंतु लिली को ऐसा करने की आवश्यकता क्या थी?’

‘बहुत भोले हो। देखो, मैं तुम्हें आज एक बात बताती हूं। वचन दो कि यह केवल हम दोनों तक ही रहेगी। मैं तुम्हें इसलिए बतला रही हूं कि शायद तुम लिली की कुछ सहायता कर सको।’

‘तुम्हारा मतलब...?’ उसने व्याकुलता से पूछा।

‘लिली सागर से प्रेम करती है और...।’

‘बस माला, मैं समझ गया।’ दीपक ने माला के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा। उसके माथे पर पसीने की बूंदें आ गई। उसके सिर में चक्कर-सा आने लगा। वह यह क्या सुन रहा है? उसे अपने कानों पर विश्वास ही न हो पाता था। उसने कांपते स्वर में माला से पूछा, ‘क्या यह सब सच है?’

‘क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं?’ तुम कांप रहे हो। यह तुम्हें क्या हो रहा है? वचन दो कि यह बात कभी डैडी के कानों तक नहीं पहुंचेगी। समय आने पर सब ठीक हो जाएगा।

‘तुम क्या सोचती हो और मैं क्या? मैं भला डैडी से क्यों कहने लगा। इतना ही क्या कम है कि तुमने समय पर मुझे सूचना दे दी।’

‘तुम्हारा मतलब?’

‘कुछ नहीं।’

‘दीपक, नहीं अवश्य कोई बात है।’

इतने में कार स्टेशन पर रुकी। दीपक लड़खड़ाता हुआ कार से नीचे उतर गया। वह अनमना-सा हो रहा था। उसका दिल चाहता था कि लिली को अभी साथ ले आए परंतु क्यों कर...।

‘दीपक, क्या बात है बताओ ना? तुम्हें इतना क्रोध क्यों आ रहा है? तुम भी समझदार हो। नए विचारों के हो। यदि वे एक-दूसरे को चाहते हैं तो इसमें दोष ही क्या है? और फिर लड़का भी तो किसी से कम नहीं।’

‘माला मैं और कुछ सुनना नहीं चाहता। मैंने भूल की जो यहां चला आया।’

‘और मैंने भी भूल की जो तुम्हें यह रहस्य बता दिया।’

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