ई-पुस्तकें >> घाट का पत्थर घाट का पत्थरगुलशन नन्दा
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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।
‘यह तुम क्या कह रहे हो?’
‘ठीक कह रहा हूं, तुम नहीं जानतीं... मुझे जिस रास्ते पर डाला गया है उसके जिम्मेदार केवल पिताजी ही हैं। परंतु जो कुछ भी उन्होंने किया सब ठीक है। अब मैं इसी में प्रसन्न हैं और शायद उनसे अधिक।’
‘यह कैसे हो सकता है? कोई पिता अपने पुत्र का जीवन नष्ट नहीं कर सकता। मनुष्य अपनी ही कमजोरियों से नष्ट होता है और अपराधी दूसरे को ठहराता है।’
‘इसलिए कि वह एक कमजोर प्राणी है और दूसरे उसकी कमजोरी से लाभ उठाते हैं।’
‘रंजन, मैं नहीं जानती थी कि तुम अपने पिता पर ऐसा दोष लगाओगे।’
‘तुम्हारे हृदय में जो अपने बाबा के लिए स्थान है वह मेरे लिए तो नहीं?’
‘ठीक है, तुम्हें कभी अपने बाबा के बराबर स्थान नहीं दे सकती। जो बाबा अपनी लड़की का जीवन बनाने में अपना जीवन दे दे, क्या वह अपने लड़के को कभी ऐसे भयानक रास्ते पर डालेगा जो तुमने अपनाया है? यह असंभव है।’
‘यही सोचकर तो मैं हैरान हूं कि मेरे जीवन से वह ऐसा भयानक खेल क्यों खेले?’
‘जो भी तुम समझते हो सब ठीक है। मैंने बहुत बड़ी भूल की जो यहां तुम्हें लेने के लिए आ गई।’ कहकर वह उठी और जाने के लिए तैयार हो गई।
तो तुम जा रही हो और मुझसे नाराज होकर? ठहरो, मैं तुम्हें गांव तक छोड़कर आऊं।‘’
‘मुझे कोई आवश्यकता नहीं है।’ यह कहकर वह तेजी से कदम बढ़ाती हुई जाने लगी।
‘कुसुम ठहरो।’ रंजन ने पुकारकर कहा। कुसुम ठहर गई। रंजन ने पास आकर कहा, ‘क्यों कुसुम बिगड़ गई?’ रंजन ने कुसुम के आंसू पोंछे।
‘तुम न घबराओ, मैं जल्दी ही तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा।’
‘सच?’
‘कुछ विचार तो ऐसा ही है।’ यह कहकर रंजन ने उसे गले से लगा लिया।
‘चलो, अब मुझे गांव तक छोड़ आओ।’ कुसुम ने कहा।
कुसुम जब घर पहुंची तो दिन बहुत चढ़ चुका था। वह डरते-डरते ड्योढ़ी से निकलकर आंगन में आई। दीपक बाबू सामने ही तख्त पर बैठे थे। उसे देखते ही बोले, ‘क्यों मिल आई रंजन से?’
‘परंतु यह आप?’
‘मैं सब जानता हूं। इतना मूर्ख न समझो मुझे।’
‘मैं क्षमा चाहती हूं।’
‘कोई बात नहीं। आखिर तुम्हारा भाई है। मिलने तो जाना ही था। यह अच्छा हुआ तुम स्वयं मिल आई। तुमसे यहां मिलता तो अच्छा न होता।’
‘बाबा, उसने मुझे ठीक रास्ते पर आने का विश्वास दिलाया है और वह शीघ्र ही हमारे पास आ जाएगा।’
मुझे उसकी कोई आवश्यकता नहीं है और वह अब नीचे रास्ते पर क्या आएगा? केवल तुम्हारा मन रखने के लिए उसने ऐसा कह दिया है।
‘नहीं बाबा, मुझे उस पर विश्वास है।’
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