ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
|
3 पाठकों को प्रिय 347 पाठक हैं |
जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
42
दो महीने बाद। शाम सात बजे, संजय के केबिन में।
मैं रेनू के साथ चैट पर आनलाइन था। उससे शिमला की खबरें लेने के साथ ही वो पुराने मेल भी पढ रहा था जो कभी यामिनी ने मुझे भेजे थे। सिर्फ यही एक सबूत था इस बात का कि वो एहसास, वो रिश्ता सिर्फ मेरी तरफ से नहीं था बल्कि यामिनी भी उसमें भागीदार थी... और शायद मुझसे भी ज्यादा।
संजय किसी महत्वपूर्ण कॉल पर था। हर दोनों यहाँ किसी खास का इन्तजार कर रहे थे। पोर्टिको का एक नया चेहरा- डॉली। एक बेहद आर्कषक लेकिन दबी सी पंजाबी पर्सनैलिटी। ये लड़की संजय के किसी दोस्त की दोस्त थी और कुछ हद तक यामिनी जैसी दिखती थी। यामिनी और मेरे बाद एक डॉली ही थी जिससे संजय को बहुत उम्मीदें थी लेकिन इस बार वो गलत था। बेशक डॉली एक खूबसूतर चेहरा थी लेकिन सिवाय इसके उसमें कुछ नहीं था जो गिना जा सकता।
उसे कामयाबी दिलाने के लिए सिर्फ मेहनत काफी नहीं थी इसलिए उसकी सारी जिम्मेदारी संजय ने मुझे और यामिनी को ही सौंपी। मैं भी अब संजय के लिए सिर्फ मॉडल नहीं रह गया था।
डॉली पर मैंने और यामिनी ने काफी मेहनत करनी पड़ी। उसका आत्मविश्वास बढ़ाते-बढ़ाते कई बार मेरा और यामिनी का आत्मविश्वास खत्म हो जाता था।
अब तक भी उसका काम सिर्फ दूसरों पर निर्भर था। उसे अब तक जितने भी मौके मिले थे या तो वो मेरी बदौलत थे या संजय की बदौलत। सबसे अजीब बात ये थी कि उसे मुझसे घबराहट होती थी।
काफी देर बात करने बाद संजय ने कॉल रखी और एक घूँट पानी पीते ही मुझे अगले दिन के लिए लैक्चर देने शुरू किये।
असल में अगले दिन मैं और डॉली एक साथ किसी फैशन शो का हिस्सा बनने वाले थे।
‘देख अंश, जब तक उसकी वॉक खत्म न हो जाये तू दिखना भी मत उसे।’
‘कोशिश करूँगा।’ मैंने आधे दिमाग से जवाब दिया।
‘और फोटो शूट के वक्त उसके सामने मत रहना वर्ना, पहले की तरह उसके चेहरे पर टेन्शन ज्यादा दिखायी देगी।’
मैंने कुछ देर उसका चेहरा ताका और- ‘संजय, मैं और डॉली साथ जा रहे हैं। तुम समझ रहे हो ना इसका मलतब?’ वो चुप रहा। ‘तुम मुझे उसके साथ भेजा ही मत करो प्लीज! एक तरफ उसे ग्रो करना है और दूसरी तरफ उसे एलर्जी है मुझ से।’ मैं फिर लैपटाप में बिजी हो गया।
|