ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
40
अगली सुबह आठ बजे।
मैं यामिनी को बस कुछ आधे घण्टे पहले ही होटेल में लाया था और डायरेक्टर ने फोन कर-कर के दुखी कर दिया।
मैं जल्दबाजी में, अपनी आस्तीन फोल्ड करते हुए उस कमरे में दाखिल हुआ जहाँ यामिनी सो रही थी। वो अब भी देर तक जागने की हालत में नहीं थी। वो सो रही थी। मैंने जल्दी जल्दी उसका मोबाइल, पानी की बोतल, दवा वगैरह उसके सिरहाने रखे मेज पर रख दिये और उसी जल्दबाजी में मैं कमरे से बाहर जा रहा था कि- ‘तुम जा रहे हो?’ ये ऊँघी सी आवाज उसी की थी। मैं पलटा- ‘तुम्हें किसी और चीज की जरूरत है?’ उसने खामोशी से सिर ना में हिला दिया।
अचानक मेरा मोबाइल झनझनाने लगा। मैंने चैक किया। ये फिर से अनुपम जी थे। एक बार को मैं कॉल उठाने वाला था लेकिन फिर ऐसे ही, बेवजह कॉल रिजेक्ट कर यामिनी के पास गया।
एक कमजोरी सी सवार हो जाती थी उसके सामने मेरे मन पर। ना जाने कितना बोझ था उसकी नजरों में कि मन भारी हो जाता था।
‘तुम ठीक हो न? किसी को कहूँ तुम्हारे पास रुकने को?’ वो काफी मायूस दिख रही थी। बेहद टूटी सी।
‘नहीं मैं ठीक हूँ।’ फिर वही थका सा लहजा। यूँ तो मुझे चले ही जाना था लेकिन पता नहीं क्यों उसके सुख दुख का ख्याल अपनी साँसों से ज्यादा होता था?
‘क्या हुआ अब?’
इस बार उसने कुछ नहीं कहा। उसका चेहरा बता रहा था कि वो बस किसी तरह टालना चाहती है मुझे। मैं उसके भाव बदलने के इन्तजार में वैसे ही बुत बना रहा। उसका कोई जवाब आता इससे पहले ही अनुपम जी की कॉल ने फिर मेरा मोबाइल झनझना दिया।
इस बार मैंने कॉल उठानी ही थी लेकिन उससे पहले- ‘ये तुम्हारा फोन है इसे अपने पास ही रखना ठीक है, मैं कॉल करूँगा।’ मैं जाने के लिए पलट गया।
‘तुम नाराज हो मुझसे?’ एक डरा सा सवाल किया उसने।
‘तुमने किया क्या है?’ मैंने उसकी तरफ देखे बिना ही जवाब दिया। उसकी नजरों में देखकर झूठ बोलना शायद मुश्किल होता।
‘कुछ नहीं। बस ऐसे ही पूछ लिया था।’
मैंने कॉल रिसीव कर ली और कमरे से निकल आया।
यामिनी ने मुझसे माफी इसलिए माँगी कि उसने मुझसे सच नहीं बताया। उसने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी कि मैं उसे चाहूँ लेकिन वो ये नहीं जानती थी उससे से प्यार मुझे खुद ही हो गया था, न कि उसकी कोशिशों की वजह से।
उस दिन मैं किसी काम पर ध्यान नहीं दे पाया, मुझे बस जल्दी थी कि मैं किसी तरह अपना शूट पूरा करके यामिनी के पास वापस जाऊँ। जब भी मुझे वक्त मिल रहा था, मैं उससे बात कर रहा था, उसका हाल पूछ रहा था। उसकी आवाज जो पहले से ज्यादा मन्द हो गयी थी वो मुझे कहीं ना कहीं यकीन दिला रही थी उसके प्यार पर। अन्जाने ही सही मेरे मन ये बात कहीं थी कि वो शायद अपने पति को मेरे लिए छोड़ सकती है। कितना बेवकूफ था मैं!
शूट खत्म करते ही मैं यामिनी के पास लौट आया। अब भी कुछ बाकी था उससे कहने को! उससे सुनने को! पूछने को! मैं वो हर गाँठ खोल देना चाहता था जो उसने अपने एहसासों में लगा ली थी। मेरा दिल टूट जाने को तैयार था लेकिन बस इस शर्त पर कि वो इसे खुद तोड़ने को तैयार हो।
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