ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
|
3 पाठकों को प्रिय 347 पाठक हैं |
जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘कौन है वो? तुमने कभी जिक्र तक नहीं किया उसका?’
‘मैं जाने कितनी ही बार तुमसे कहना चाहती थी। कभी लगता कि तुमको बताना जरूरी है फिर लगता कि क्या जरूरत है? मैं तो वैसे भी तुम्हारे साथ नहीं रह सकती और पता नहीं तुम क्या सोचते हो मेरे बारे में? सोचते हो भी कि नहीं?’
‘लेकिन यामिनी तुम्हें अगर मैं कहूँ कि सिर्फ तुम और तुम ही मेरी सोच में हो तो?’ उसकी नजरें कुछ देर को मेरी नजरों में ठहर गयीं। एक गहरा प्यार.... एक अथाह यकीन कुछ देर उसकी आँखों में तैरा और जल्द ही वो भी उसके आँसुओं की तरह कहीं समा गया।
‘तब भी! तब भी हमारा साथ होना मुमकिन नहीं हैं। मैं उसे इस तरह नहीं छोड़ सकती।’ ये एक फैसला था।
इसके बाद वो चुप हो गयी और मैं भी लेकिन पूरा माहौल जैसे ठहाके लगा रहा था मुझ पर। मेरी सोच पर। मेरे प्यार पर। मैं वहाँ से खड़ा हो गया। उसकी नींद भरी आँखें मेरी तरफ यूँ देख रहीं थीं मानों पूछ रही हो- कहाँ जा रहे हो?
‘तुम्हें आराम करना चाहिये।’
मैं बाहर आ गया।
उसके सच हमेशा ही चौंका देते थे मुझे लेकिन उस रात जो मुझे पता चला वो सारी सीमाओं से परे था। कुछ वक्त पहले मैं कितना खुश था उसे लेकर। कितना नाज था अपने प्यार पर लेकिन अब जैसे शर्म आ रही थी। मैं किसी की पत्नी से प्यार करता था अब तक? ना जाने वो कितनी गुनहगार थी लेकिन मैं इतना था कि खुद को आइने में देखने का साहस खो चुका था।
सारी रात मुझे वो सब याद आ रहा था जो कुछ यामिनी से मिलने के बाद शुरू हुआ था।
|