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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘और तब भी तुम कहती हो कि तुम कन्फ्यूज्ड हो?’ मैं मुस्कुरा उठा!

‘मैं मर सकती हूँ तुम्हारे लिए अंशं।’ उसके लहजे में सिर्फ बैचेनी या प्यार नहीं था बल्कि चुनौती थी। हर शब्द उसके दिल से निकल रहा था। वो सिर्फ बोल नहीं रही थी बल्कि मुझे यकीन भी दिलाना चाहती थी।

‘तुम्हें मेरे लिए मरने की जरूरत नहीं है यामिनी.... हम साथ जी भी तो सकते हैं?’ मैंने उसके चेहरे पर आयी एक लट उसके कानों के पीछे करते हुए कहा।

‘नहीं!’ वो घबरा गयी। ‘मैं तुम्हारे साथ जी नहीं सकती। तुम्हारे साथ कोई रिश्ता नहीं बना सकती!’

‘लेकिन क्यों?’

‘नहीं!’ वो नजरें चुरा रही थी। कुछ छुपा रही थी मुझसे।

‘क्या हमारा ऐज डिफ्रेन्स बीच में आ रहा है?’

‘नहीं।’ उसने आँखें भर लीं। उसने अपना चेहरा घुमा लिया।

‘तो?’ मैंने हाथों से उसका चेहरा अपनी तरफ किया। ‘प्लीज यामिनी। यू नो आई लव यू। फिर ये सब क्यों?’

‘मेरी शादी हो चुकी है अंश।’

‘क्या?’ मेरे लफ्ज होठों से बाहर नहीं आ सके। क्या कहा उसने? क्या मैंने कुछ गलत सुन लिया है? कुछ पलों के लिए सब कुछ सुन्न हो गया। ‘तुम मेरे साथ मजाक कर रही हो?’ मैं इतना हैरान था कि हँस पड़ा। उस पर ना तो मेरी हैरानी को कोई असर था ना हँसी का।

‘मुम्बई आने से पहले ही मेरी शादी हो चुकी थी। मेरे ससुराल वाले मेरे इस काम के खिलाफ थे लेकिन मेरे पति ने मुझे बहुत सपोर्ट किया और यहाँ आने दिया। बस एक वही है जो आज तक मुझे सपोर्ट करता है।’ वो चुप हो गयी।

मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि अब कहाँ से शुरू करूँ?

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