लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

347 पाठक हैं

जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘वो बर्दाश्त करना ज्यादा आसान होता मेरे लिए!’ मैं कुछ तो बयान कर सका। उसके पास जाकर- ‘तुमने ऐसा क्यों किया यामिनी?’ मेरी आवाज में अब तक नाराजगी थी।

‘मैं नहीं जानती लेकिन... शायद तुम जानते होगे।’

‘मैं समझ नहीं पा रहा।’

‘इस बार तो खुद मैं भी समझ नहीं पा रही।’ थकी सी आँखों से वो छत को ताकने लगी। ‘हमेशा से जानती थी कि मुझे क्या बनना है.... अपनी जिन्दगी में क्या चाहिये क्या नहीं, लेकिन जब से तुम्हें मिली हूँ।’ मेरी तरफ देखते हुए वो एक पल को रुक गयी- ‘तुमने सब कुछ बदल कर रख दिया है अंश।’ ये एक शिकायत थी.... मजबूर सी। दबी सी।

‘तो ये एक अच्छा बदलाव है या बुरा।’ मैंने उसे छेडा। शायद मजाक में ही सही लेकिन वो सच बता सके।

‘हर चीज को सही या गलत के दायरे में रखना मुमकिन नहीं होता अंश, कुछ अपवाद भी होते हैं जो तुम्हें बड़ी आसानी से कन्फ्यूज कर सकते हैं।’

‘वैसे ही ना जैसे तुम इस वक्त मुझे कन्फ्यूज कर रही हो?’ मैं मुस्कुरा रहा था। उम्मीद थी कि आज सब कुछ सुलझ जायेगा। मैं हर वो दीवार गिरा देने को तत्पर था जो उम्र, लिहाज के नाम पर हमारे बीच खड़ी थी। मैं उसे ताक रहा था कि कोई जवाब मुझे मिल जाये लेकिन वो देने को तैयार ही नहीं थी जैसे।

‘तुम जाओ अंश। आराम कर लो।’

वो फिर निराश कर रही थी मुझे।

‘तो मुझे कभी पता नहीं चलेगा कि मैं तुम्हारे लिए क्या हूँ।’ मुझे यकीन था कि वो इस कगार पर तो ये बहस खत्म नहीं करेगी।

‘तुम क्या हो मेरे लिए?’ उसने मेरा सवाल दोहराया मानों जवाब तो जानती हो लेकिन किस तरह कहे ये ना मालूम हो। ‘आज जिस एहसास से मैं गुजरी हूँ, उसे ठीक से समझा तो नहीं सकती लेकिन वो एक अलग-सा डर था। मेरी आँखों पर अन्धेरा छा रहा था.... मेरे हाथ पैर छूट से रहे थे... लगा जैसे मर रही हूँ मैं!.... लेकिन मुझे ये डर नहीं था कि मैं मर जाऊँगी।’ उसकी विकल सी नजरें एक बार फिर मुझ पर थीं। ‘तुम्हें पता है मैं किस बात से डर रही थी?’ मैं कोई जवाब दे पाता इससे पहले ही-’मुझे डर था कि मैं तुमको दोबारा फिर कभी देख नहीं पाऊँगी। जैसे कुछ कहना है तुमसे। कुछ बेहद जरूरी! जो कहे बिना मैं मरना नहीं चाहती। लगा कि तुम्हारे साथ जीना है मुझे, कुछ वक्त बिताना चाहती हूँ तुम्हारे साथ... उससे पहले नहीं मरना चाहती!’ उसकी बेचैनी हर लफ्ज के साथ बढ रही थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai