ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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सुबह 11 बजे।
पहने हुए ओवरकोट की बाजू को सेट करने के लिए हाथ झटकते मैं अपनी लाइन्स मन में दोहराते हुए मैं अपनी जगह पर आ गया। मुझे सड़क के किनारे की रेलिगं से टिककर थोड़े बहुत पोज देने थे और एक आध लाइन बोलनी थी। डायरेक्टर ने पोज के अनुसार मेरे दोनों हाथ फैलाकर रेलिंग पर रखवा दिये। मेरी नजरें बार बार सड़क पार यामिनी पर जा टिकतीं जो अपनी बोरियत दूर करने के लिए टहलते हुए सिगरेट पी रही थी। मैं जानता था कि रोलिंग शुरू होने से पहले तो मेरी तरफ देखने से रही।
शूट शुरू हुआ। यामिनी को छोड़कर सबका ध्यान सिर्फ मेरे चेहरे और भाव पर था। हम शूट के बीच में थे कि ना जाने यामिनी की कतराई सी आँखों ने क्या देखा कि- ‘अंश!’ वो जोर से चीख पड़ी! हर किसी का ध्यान उसने खींच लिया था। वो तेजी से भागती हुई मेरी तरफ आ रही थी।
इतनी घबराई हुई थी कि मेरे नाम के अलावा उसके मुँह से कुछ और निकल ही नहीं रहा था। जैसे ही वो मेरे पास पहुँची, उसने अपने डर से काँपता हुआ हाथ मेरे बाँये हाथ के ऊपर रख दिया और हल्की एक आह के साथ उसकी आँखे बोझिल-सी होने लगीं। ये सब कुछ इतनी जल्दी में हुआ था कि कुछ देर तक न मुझे और न किसी और को कुछ समझ आया।
‘व्हाट द हैल इज दिस यामिनी?’ डायरेक्टर ने अपने चश्मा निकाल कर फेंक दिया। सारा वक्त, सारी मेहनत मिट्टी में मिल गयी। उसका पारा चढना तो लाजमी था। वो यामिनी पर बेलगाम चिल्ला रहा था लेकिन यामिनी को जैसे उसकी कोई परवाह नहीं थी। उसकी डरी-सहमी सी आँखें बस मेरे चेहरे पर ही थीं। जल्द ही उसने उन्हें बन्द कर लिया और डगमगा गयी।
‘यामिनी!’ मैंने उसे सम्हाल लिया।
सब लोग हमारे आस पास जमा हो गये।
‘क्या हो गया इसे?’ डायरेक्टर ने पूछा।
‘वो अंश को काट लेता।’ रेलिंग की तरफ उँगली किये वो लगभग बडबड़ा रही थी। उसकी हाँफती हुई आवाज धीमी पड़ गयी। निढाल सी हो रही उसकी काया ने अपना सारा भार मेरी बाँहों पर ही छोड़ दिया।
‘कुर्सी लाओ जल्दी!’ मैंने बॉय से कहा।
उसे सम्हालकर कुर्सी पर लेटाने के बाद हम सबने अपने चारों ओर नजर दौड़ायी लेकिन बस जाते हुए साँप की पूँछ ही हम लोग देख पाये।
मैं यामिनी के पास लौटा और उसके हाथों को चैक किया। उसने अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख दिया था जिसमें साँप के दाँत उसके हाथ पर गड़ गये थे।
एम्बुलेन्स को आने में काफी वक्त लगता इसलिए हमने उसे गाड़ी में ले जाना ही ठीक समझा। हम जितनी जल्दी उसे अस्पताल पहुँचा सकते थे, पहुँचा दिया।
अस्पताल में उसे भर्ती करने के बाद टीम के दो चार लोग डॉक्टर की रिपोर्ट का इन्तजार कर रहे थे। डॉक्टर ने मुझे और डायरेक्टर साहब को अन्दर बुलाया और उसका हाथ दिखाते हुए कहा कि- ‘आप देख सकते है कि इनका हाथ नीला पड़ चुका है। साँप का एक दाँत इनके हाथ की नस पर लग गया है जो हमारे खून को वापस दिल तक पहुँचाती है तो हो सकता है इन्हें थोड़ा वक्त लगे पूरी तरह से ठीक होने में।’
डॉक्टर की बात सुनकर डायरेक्टर साहब थोड़े घबरा गये। उन्होंने डॉक्टर से पूछा- ‘तो इनको कोई खतरा है?’ डायरेक्टर ने रूमाल से अपने माथे पर आ रहा पसीना साफ किया।
‘मैं ये नहीं कह रहा।’ डॉक्टर हमें दिलासा देने के लिए मुस्कुराया। ‘देखिये, यहाँ कई तरह के साँप पाये जाते हैं, ज्यादातर जहरीले होते भी नहीं। हमें अभी जहर का कोई अन्दाजा नहीं है। जो प्राइमरी लेवल पर हम कर सकते थे वो हम कर चुके, लेकिन खून की रिपोर्ट आने तक तो इन्तजार करना ही पडे़गा। उसके बाद ही हम आगे कुछ कर पायेंगे।’
‘तो फिर ये बेहोश क्यों है?’
‘हम पहले ही बता चुके है कि ज्यादातर केसेज में बेहोशी का कारण सिर्फ साँप का डर होता है।’ डॉक्टर ने हमें इन्तजार करने को कहा।
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