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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

36

एक हफ्ते बाद, सुबह 7 बजे।


मेरी कैब कौशानी की एक खूबसूरत, सुनसान और लहराती सड़क के किनारे रुकी। पहाडों की एक आम तरह की सड़क तरह एक तरफ खायी और दूसरी तरफ छोटे-बड़े पहाड। गर्म कपड़ों के एक एड के लिए मैं यहाँ था और मेरे साथ थी सबसे ज्यादा पसन्द की जाने वाली को-मॉडल यामिनी।

गाड़ी से बाहर कदम रखते ही मेरे बदन को एक ठण्डी हवा की लहर ने हल्का कंपकंपा दिया। बाहर का तापमान गाड़ी के तापमान से काफी अलग जो था। कई लोगों ने खुद पर जैकेट डाल ली लेकिन मैंने नहीं। एक लम्बे समय बाद मुझे पहाड की खुली हवा और ये ठण्डक मिली थी। मैंने अभी नजर चारों ओर नजर भी नहीं दौडाई थी कि एक और गाड़ी मुझसे कुछ दूर रुकी। ये यामिनी थी और बाकी का कूर था। गाड़ी से उतरकर उसने बस खानापूर्ती के लिए मुस्कुरा दिया और आगे बढ़ गयी।

पिछले कुछ दिनों से यामिनी का बर्ताव एकदम बदल गया था। वो कुछ कटने लगी। हर बार मुझे ही जाकर बात शुरू करनी होती थी। ये रिश्ता भले ही संजय और यामिनी की कोशिशों का नतीजा था लेकिन अब इसे निबाहने की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी ही रह गयी थी। यामिनी तो अपनी तरफ से सिर्फ एक फासला बना रही थी। एक फासला जिसे तय करने हमें 2 साल लग गये थे।

अपने ओवर कोट की जेब में हाथ डाले वो एक लम्बी मुस्कुराहट के साथ डायरेक्टर के साथ बिजी थी। चारों तरफ नजर घुमाते हुए बस एक बार उसने लापरवाह सी नजर मुझे पर डाली और फिर उसका फोकस डायरेक्टर की बातें पर हो गया।

मैं उससे कई सवाल पूछना चाहता था.... अब जरूरी हो गया था।

‘तुम ये ऐसे अन्जानों सा बर्ताव क्यों कर रही हो?’

‘कितनी खूबसूरत जगह है ना ये! काश मेरा घर यहाँ होता।’ एक गहरी साँस के साथ उसने मेरे सवाल को भी खुद में समा लिया लेकिन मैं अब तक इन्तजार कर ही रहा था। उसकी इस बेरुखी की वजह मैं आज ही जानना चाहता था। आखिर क्या गलती थी मेरी? वो इतनी अजीब क्यों हो गयी थी?

‘जिन्दगी में अजीब बातें भी होती हैं अंश। आदत डाल लो।’ आखिरकार जिन नजरों को उसने जबरन नजारों में उलझा रखा था उसे मुझ तक लाना ही पड़ा।

‘पहेलियाँ....’ मैं नाराज सा हो गया और अब मेरी आँखें उससे हटकर सामने नजारों पर थीं।

‘मैं तुम्हारी सफलता का एक जरिया बने रहने पर भी खुश हूँ अंश।’ उसने एक कड़वी मुस्कुराहट के साथ कहा और चली गयी। उसके इन लफ्जों ने मुझे कुछ याद दिला दिया। जरूर संजय ने उसे कुछ कहा है लेकिन क्या?

उससे बात करने के लिए मैंने जेब से फोन निकाला ही था कि- ‘सर तैयार हो जाइये।’ एक लड़के ने आकर मुझे टोक दिया।

करीब एक घन्टे बाद हम सब शूट के लिए बिल्कुल तैयार थे। सबसे पहले यामिनी और मुझे एक साथ शूट किया गया, फिर थोड़ी देर में यामिनी को अकेले और लगभग आखिर में मुझे अकेले। उसके लिए मेरा थोड़ा और मेक ओवर किया गया जिसमें करीब आधा घन्टा और खपना था। यामिनी का काम यहाँ खत्म हो चुका था, वो चाहती तो एक कैब से वापस लौट सकती थी लेकिन उसने ऐसा किया नहीं। वो हमेशा की तरह मेरी परर्फामेन्स देखने के लिए रुकी रही।

बस ये ही एक बात थी जो कभी बदली नहीं।

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