ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘तुम उसके लिए सिरीयस हो?’ मानों उससे कुछ छिन रहा हो, जैसे उसे उम्मीद थी कि मैं कभी ना कभी उसे मिल ही जाऊँगा।
‘बदकिस्मती से!’ मैं सोफे पर लेट गया। एक हाथ से माथे को मलते हुए- ‘प्रीती, मैं... पता नहीं क्या करना चाहता हूँ? हजार वजह है जो मुझे उसके करीब जाने से रोकतीं हैं। वो बर्बाद है। बदनाम है। मुझसे दो साल बड़ी है और...’
‘तुमको तो हमेशा बड़ी लड़कियाँ ही पसन्द आती हैं उसमे नया क्या है?’ मुझे टोंट किया ‘तो तुमने उसे कह दिया?’
‘नहीं। हो सकता है मैं उसे कभी पूछ ही न पाऊँ और हो सकता है कि मैं उसे बोल दूँ और वो मना कर दे।’ मैं अपनी कल्पनाओं में खुद पर ही मुस्कुरा उठा- ‘प्रीती मुझे नहीं पता था कि प्यार अनिश्चितताओं का नाम है। बस एक ही बात तय है और वो ये कि उसके बिना जीने की सोच ही मुझे तोड़ने लगती है...’ मैं अपनी बात पूरी भी न कर सका था कि किसी ने बहुत जोर से दरवाजा पटका! संजय उसी वक्त फ्लैट में दाखिल हुआ और शायद मेरे आखिरी लफ्ज उसने सुन लिये। मुझे घूरते हुए वो अन्दर अपने कमरे में चला गया।
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