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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

33

सुबह करीब 5.30 बजे।


मैंने पलकें झपकायीं। मेरे कमरे में बहुत खामोशी थी। ना टीवी की आवाज, ना कोई उठा पटक। यामिनी है या चली गयी? ये देखने के लिए मैंने आँख खोलीं और दूसरी तरफ पलटा तो सन्न सा रह गया! वो मेरे बगल में ही लेटी थी और मुझे ही ताक रही थी। उसकी आँखों में नींद का कोई नाम निशान नहीं था, बस एक अजीब सी खामोशी थी।

हम दोनों एक पल के लिए चौंक से गये! यामिनी की जैसे कोई चोरी पकड़ी गयी। वो झट से उठकर बैठ गयी। मैं भी अपने तकिये को सहारा लेकर आधा उठ गया।

वो अपनी झेंप को चाहकर भी छुपा नहीं पा रही थी। मैं उसकी झेंप को बढ़ाना नहीं चाहता था इसलिए मैंने इस बात को नजरअदांज कर के पूछा, ‘तुम सोयी नहीं?’

‘नहीं,। नीद नहीं आयी।’ उसने हथेलियाँ मलते हुए कहा।

‘तो... अब तो सवेरा हो गया है, अब तो सो सकती हो न?’ मैं उसे हँसाना चाहता था

‘नहीं, वापस जाते हुए रास्ते में सो जाऊँगी। अभी नीद नहीं आ रही है।’ उसने नजर चुराते हुए जवाब दिया।

‘तो फिर कोई और प्रोग्राम देख लो या सारे खत्म हो गये?’ मैंने फिर कोशिश की लेकिन फिर नाकाम ही रहा।

‘अंश, तुम सो जाओ। थोड़ी देर में जगा दूँगी तुमको, फिर पैकिंग करके निकलना भी तो है।’ वो उसी संजीदगी के साथ बिस्तर से उतर गयी।

‘ठीक है, मैं तो सो रहा हूँ। गुड नाइट!’ मैं वापस लेट गया। उसे चले जाना चाहिये था लेकिन वो गयी नहीं। वहीं खड़ी रही किसी आत्मग्लानि के साथ।

‘क्या हुआ?’

‘अंश, तुम मुझे पागल समझ रहे होगे न?’ उसने सहमी सी आवाज में पूछा।

‘नहीं। पागल नहीं हो तुम, तुम उल्लू हो! जो रात भर जागता है।’ मैंने हँसते हुए आँखें बन्द कर लीं।

वो सच में उल्लू ही थी। रात भर जागी और दिन भर नींद में इधर-उधर गिरती रही। पूरे रास्ते मैं उसी की सेवा में था। कभी उसे सम्हाल रहा था और कभी उसके सामान को। वो पता नहीं मुझे क्या समझती थी कि मेरे साथ कोई फारमेलिटी नहीं की कभी। मुझे कुछ बुरा भी लग सकता है या मैं ऐसा कुछ कर सकता हूँ जिसका उसे बुरा लग जाये, उसने ये सब कभी सोचा ही नहीं। जब हमने गोवा के होटेल से चैक आउट किया तब से मेरा काम शुरू हुआ और खत्म हुआ, जब मैंने उसे सही सलामत मुम्बई के फ्लैट में ला पटक दिया।

उसने फ्लैट में घुसते ही बस अपने सेन्डल उतारे और फिर उसी गहरी नींद में सो गयी।

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