ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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रात करीब ग्यारह बजे।
हम दोनों अब तक भी बीच पर उसी जगह पर बैठे थे, एक दूसरे से कहते-सुनते। हँसते-मुस्कुराते हुए। मुझे जैसे उस रात कुछ बहुत कीमती खुशी मिल गयी थी। लगा जैसे बस यही चाहिये था मुझे और अब इसे छोड़ कर और कहीं नहीं जाना है।
हमारे चारों तरफ का नजारा और बदल गया था।
डूबता सूरज तो मुझे कोई शान्ति महसूस नहीं करा सका, हाँ लेकिन रात को जब चाँद आसमान में था और बीच लगभग खाली हो गया, तब मुझे वहाँ मुझे वहाँ काफी सुकून मिला। सारा समां चाँद की रोशनी से सराबोर था। समन्दर अपने रेत के विशाल कालीन पर गहरी नीद सो रहा था। दूर तक बस उसकी लहरों की आती-जाती साँसों की आवाज ही गूँज रही थी। आखिरी पाँच मिनटों में मैं और यामिनी इस खामोशी की आवाज को सुनते रहे और यकायक- ‘मुझे भूख लगी है।’ वो अपने कपड़े झाड़ती हुई खड़ी हो गयी।
यामिनी और मैंने बाहर ही खाना खा लिया, फिर हम सडक़ों के किनारे चहल कदमी करने लगे। इस शहर की रात, दिन से ज्यादा उजली थी। रात के 12.30 हो चुके थे लेकिन चारों तरफ रोशनी, गाड़ियों की भीड़, शोर और लोगों की चहल पहल कम नहीं हुई थी। ऐसा लग रहा था मानों कोई कार्नीवाल चल रहा हो यहाँ। यामिनी लगातार मुझे रास्ते में पड़ते मॉल, बिल्डिंग के बारे में बता रही थी। बड़ी खुशी से उसने मुझे इस शहर से मिलवाया और बेवजह ही मुझे एहसास हुआ कि ये लड़की मेरे साथ शिमला जैसी छोटी जगह पर तो खुश नहीं रह पायेगी। उसे तो इस बड़े शहर की आदत है।
उस रात यामिनी पहली बार मेरे इतने करीब थी। चलते हुए कई बार उसने अपना हाथ मेरे बगल में डाल दिया। जब मन करता वो मेरे बाल नोंच लेती। कई बार हँसी हँसी में उसने मेरे गाल पर हल्के से थप्पड़ मार दिये। मेरे करीब आना पता नहीं उसे अच्छा लगता था या गलती से आ जाती थी? कुछ भी कहना.... बेहद मुश्किल था।
ये गोवा में हमारी आखिरी रात थी और यामिनी इसे सोते हुए नहीं गुजारना चाहती थी। देर रात तक हम दोनों गोवा की सड़कों पर भटकते रहे। मैं थक चुका था लेकिन वो? वो तो बस खुश थी। उसे कोई मतलब नहीं था कि वो कहाँ घूम रही है? किसके साथ है? वक्त क्या हुआ है? उसे देख कर औरों ने क्या सोचा ये तो मैं नहीं जानता लेकिन मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे आज ही जेल से छूट कर आयी है।
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