ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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जिस शाम मैं मुम्बई के लिए निकल रहा था, मेरे सारे दोस्त बस स्टैण्ड पर मेरे लिए जमा थे, प्रीती भी। सबसे आखिरी में मैं उससे मिला। थोड़ा नाराज जो था उस पर। हमारी हल्की फुल्की बात हुई जिसमें कोमल का भी जिक्र था।
प्रीती के अनुसार उसने उस दिन जो कुछ कोमल से कहा वो सब सच था, अच्छा था।
‘मेरा अफेयर था मुझसे बड़ी लड़की के साथ, ये अच्छा सुनायी दे रहा है तुमको?’ मैं चाहकर पर उस पर मुस्कराये बिना ना रह सका।
‘मेरे लफ्ज और तरीका अलग था अंश... और अगर तुम ये कहना चाहते हो कि मैंने तुम्हारी कोमल को चोट पहुँचायी है तो सॉरी! मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। ये उसका अविश्वास है जिसने उसे चोट पहुँचायी। कॉल रिसीव करते ही उसने सबसे पहले ये पूछा कि मैं कौन हूँ? दोस्त जैसे शब्द पर उसे यकीन नहीं हो रहा था तो मैंने कह दिया कि हाँ, मैं अंश को पसन्द करती हूँ। फिर उसके सवाल और बढ़ गये। मैंने उसे सिर्फ ये कहा कि मैं क्या अंश को तो स्कूल की सभी लड़कियाँ पसन्द करती थी। अंश हमारे स्कूल की सबसे अच्छी पर्सनैलिटी माना जाता था। बस! इतना ही कहा था।’
‘लेकिन प्रीती तुमने ये सब कहा ही क्यों? तुम फोन काट भी तो सकती थी न?’
‘देखो अंश। मैं बस इतना कह सकती हूँ कि वो तुम पर यकीन नहीं कर सकती। तुम जिस लाइन को अपना करियर बनाना चाहते हो वहाँ न जाने ऐसे कितने मौके आयेंगे जब तुमको उसके विश्वास की जरूरत होगी जो कि वो कभी नहीं कर सकती।’
प्रीती भले ही थोड़ी पागल थी, सनकी थी लेकिन वो मक्कार नहीं थीं। मैं उसकी बातों पर यकीन कर सकता था। उसने अपनी सफाई नहीं दी लेकिन हाँ मेरा नजरिया जरूर साफ कर दिया उसने। मैंने उससे ज्यादा सवाल नहीं किये। कोई मतलब ही नहीं था।
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