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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

29


मैं मुम्बई आ रहा हूँ ये सुनकर संजय जितना हैरान था उतना ही खुश भी। पहले की तरह उसका फ्लैट अब भी खाली था। उसने मुझे वहीं रहने का सुझाव दिया, जब तक मैं रहना चाहूँ या जब तक मैं खुद अपना ठिकाना ना कर लूँ। मैं वहीं रुका।

संजय कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर था। उसने मुझे फोन पर ही एड शूट का सारा प्लान बता दिया। ये शूट मेरे मुम्बई पहुँचने के अगले ही दिन गोवा में होना था। मैं और यामिनी उसी रात गोवा के लिए निकल गये।


अगली शाम 4 बजे।

यामिनी और मैं एयरपोर्ट के बाहर कैब का इन्तजार कर रहे थे। इस बार मैं एक नयी यामिनी से मिल रहा था जिसकी आँखें मुझसे मिलते ही मुस्कुराने लगती थीं। झेंप जाती थीं। विकल हो जाती थीं। वो मेरे साथ कम्फर्टेबल नहीं थी और ना मुझे होने दे रही थी। मैं अपना सारा ध्यान बस अपने मोबाइल पर होने का दिखावा कर रहा था और वो अपने पर्स को बार बार जिप-अनजिप करने में जबरदस्ती मशरूफ थी।

जिस रात हमें गोवा के लिए निकलना था संजय ने मुझे बताया कि उसने यामिनी के दिमाग में मुझे लेकर कुछ गलतफहमी डाल दी है और अब मुझे उसी के अनुसार बर्ताव करना है। मैं ऐसा कुछ भी करने के लिए तैयार नहीं था। ना तो मेरे दिमाग में कोई प्लान था और ना कोई सोच, लेकिन फिर भी उसके लिए कुछ तो था मेरे मन में, जिसे मैं खुद भी नहीं समझ पा रहा था, बस इतना कह सकता हूँ कि यामिनी जब जब मेरे सामने आती थी लगता था जैसे बारिश में भीग रहा हूँ। जैसे कुछ पिघल रहा हो मेरे अन्दर। मेरी साँसें ही थमने लगती थीं।

शायद इसे ही आकर्षण कहते हैं।

‘तो तुमको तो बहुत जल्द एक बड़ा मौका मिल गया।’ उसने किसी तरह बात शुरू की।

‘जल्द?’ मैंने नकारते हुए कहा।

‘हाँ जल्द। तुम खुशनसीब हो, जो इस लाइन में इतनी जल्दी एक्पोजर मिल गया नहीं तो...’

‘ये छोड़ो यामिनी।’ मैंने टोक दिया ‘कुछ और बात करो प्लीज।’ मैंने मोबाइल जेब में रख दिया।

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