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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

27

अगली दोपहर 2 बजे।


मैं जल्दबाजी में तैयार हो रहा था और मेरा मोबाइल जो बिस्तर पर कहीं पड़ा होगा, लगातार बज रहा था। मनोज, कोमल, प्रीती तीनों एक एक कर मेरा नम्बर डायल कर रहे थे लेकिन इन सब में प्रीती तो अपनी हद पर थी। पिछले दस दिनों से उसने मुझे देखा नहीं था, मैं उसकी परेशानी समझ सकता था। गलती उसकी नहीं थी, मुझे देखने की बीमारी थी उसे। उसे टाले बिना निकलना नामुमकिन था। घर से निकलते हुए मैंने उसे अपने दिनभर की सारी प्लानिंग मैंसेज कर दी लेकिन फिर भी उसकी कॉल आ ही रही थीं। सिवाय अवाइड करने के कुछ और नहीं था मेरे हाथ में।

हम सब ने पहले फिल्म देखी उसके बाद हाथ में कोल्ड ड्रिंक्स लेकर ग्लेन के लिए निकल पडे। प्रीती की कॉल अब तक आ रही थी। कोमल ने इस बार कोई सवाल नहीं किया बस गुमसुम हो गई, शायद उसे शक हो गया था। काश उस दिन अपने मन की बात उसने मन में ही न रखी होती।

कुछ पन्द्रह मिनट बाद हम माल रोड के उस कोने पर थे जहाँ से थोड़ा पैदल चलकर हम फॉल तक पहुँचते। शाम की धुंधली रोशनी में ये जगह बिल्कुल अद्भुत लग रही थी। चीड़ और देवदार के गहरे पेड़, हल्के कोहरे के साथ मिली ठंडी हवा, कुछ निचले बादल हमारे सिर को छूने की कोशिश कर रहे थे। पूरा माहौल एक सुखद चुप्पी से भरा था। मैंने कोमल की तरफ देखा, वो अब भी उदास ही थी। उसकी खामोशी बेधने के लिए मैंने बात शुरू की। चलते-चलते मैंने उसे अपने मुम्बई टूर के बारे में सब कुछ बताया। संजय के उस ओछे प्रस्ताव को छोड़कर सब कुछ, यहाँ तक कि यामिनी और मेरी बातचीत के बारे में भी। मुझे एहसास भी नहीं था कि उसे मेरी बातों में से कुछ बुरा लग जायेगा।

‘तो यामिनी सुन्दर है?’

‘हाँ सुन्दर कह लो या... अट्रेक्टिव। अच्छी है!’

‘और तुमको पसन्द भी करती है।’

‘मुझे ऐसा कुछ नहीं लगता।’ मैंने झूठ बोलने की कोशिश की। ‘लेकिन संजय कह रहा था कि उसी ने मुझे सबसे ज्यादा एप्प्रीशियेट किया था। वो संजय की गर्लफ्रेन्ड है तो उसका फैसला मान लिया गया।’

‘तो वो इतनी मेहरबान क्यों है तुम पर?’ कोमल की आँखों में शक साफ दिखायी दे रहा था।

‘अरे! ऐसे ही, पता नहीं, मैं नहीं जानता। संजय की मानूं तो शायद...छोड़ो। तुम क्यों इन बातों में खो रही हो। देखो, सामने कोहरा कितना अच्छा लग रहा है। पता है कोमल मैं यहीं पैदा हुआ, पला, बढ़ा लेकिन इन सब जगह को देखकर इतना अच्छा कभी नहीं लगा। ये जगह जिनती खूबसूरत है उतनी कभी लगी नहीं मुझे।’

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