ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
गलती पता चलने पर मैं उसे मनाने कोशिश करता रहा लेकिन वो नहीं मानी। मुझे उसे शिफ्ट खत्म होने के बाद ही पकड़ना पड़ा। वो कैब की तरफ जा रही थी।
‘हे! आई एम सॉरी कोमल!’ मैंने कान पकड़ लिये।
‘तुम ये कल से बोल रहे हो लेकिन क्यों?’
‘तुम बात नहीं कर रही हो मुझसे इसलिए। देखो अगर मुझे पता होता कि तुम वहाँ हो तो मैं जरूर मिलता तुमसे।’
‘अंश गलती मेरी थी। मुझे नहीं आना चाहिये था वहाँ।’
‘हाँ। रात का वक्त था आना तो नहीं चाहिये था, तुम अकेली थी?’ मैंने सोचते हुए पूछा
‘हाँ तो? क्या भाई को लेकर आती वहाँ?’
कुछ देर बाद ही उसकी हँसी लौट आयी।
मुझे कोमल के साथ काफी हल्का महसूस होता था। जैसे किसी शान्त-सी जगह पर अकेला खड़ा हूँ। थोड़ी देर के लिए दिल दिमाग से सारी चिन्ताएं, सोच-विचार सब खत्म से हो जाते थे।
मैं उसके साथ वक्त गुजारना चाहता था और इसके लिए उसे घर छोड़ने से अच्छा बहाना कोई नहीं होता।
उसे खुशी थी कि आज मैं उसे अपनी बाइक से छोड़ रहा हूँ। हम निकल ही रहे थे कि प्रीती की कॉल आ गयी, जिसे देखते ही उसने सवाल कर लिया।
‘अंश ये सुबह के 4 बजे कौन याद कर रहा है तुमको?’
‘वो, ये प्रीती है, मेरे साथ स्कूल में थी। क्लास मेट।’ मैंने बाइक स्टार्ट की।
‘अब तक बात करती है और इस समय क्यों कॉल कर रही है?’
‘पता नहीं, अब तक मेरी कोई बात नहीं हुई है उससे।’
‘तो कॉल उठा लो, काट क्यों रहे हो?’
‘मुझे तुमसे बात करनी है कोमल, वो पागल है उसे जाने दो, तुम बात करो कुछ।’ मैंने बाइक बढ़ा दी।
‘तो पार्टी कब दे रहे हो?’
‘कल फ्री हो तुम?’
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