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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

मैंने दोबारा उसका नम्बर डायल किया और उम्मीद के मुताबिक वो नाराज थी। वो पहली बार मुझसे नाराज थी।

मेरे पास उस वक्त बोलने के लिए बस एक ही लफ्ज था- ‘सॉरी...’

‘तुम किससे बात कर रहे थे इतनी रात को?’

‘एक दोस्त था, क्यों?’

‘तुम जब से वहाँ गये हो तब से ठीक से बात नहीं करते। कितने फोन किये तुमको, 10 में से 2 उठाते थे।’

‘समय ही कहाँ मिलता था वहाँ? तो और बताओ कैसा चल रहा है सब?’

‘ठीक है, कल आ रहे हो कॉल सेंटर?’

‘हाँ। कोई प्राब्लम तो नहीं हुई न?’

‘नहीं।’

‘ओ के और रिजल्ट भी नहीं आया अब तक?’

‘ना। अंश, तुमने ये ही सब पूछने के लिए फोन किया था क्या?’ वो फिर नाराज हो गयी।

‘अरे नहीं। लेकिन तुमको हुआ क्या? इतनी नाराज क्यों हो रही हो? मैंने क्या किया?’

‘कुछ नहीं। सॉरी, मैं भूल गयी थी कि मैं तुम्हारे साथ जबरदस्ती हूँ और मुझे तुम पर नाराज होने का कोई हक नहीं है।’

‘ऐसा नहीं है कोमल। तुम हो सकती हो मुझ पर नाराज लेकिन कोई वजह तो हो तुम्हारे पास।’

‘है मेरे पास वजह। तुम नहीं जानते कि मुझे कितनी चिन्ता हो रही थी तुम्हारी। आखिरी बार फोन पर तुमने मुझसे बस ये कहा कि यहाँ तुम पहुँचने वाले हो और तुम्हें ठण्ड लग रही है। तुम्हारे पास गर्म जैसा भी कुछ नहीं था। उसके बाद मैं तुमको फोन करती रह गयी और तुमने उठाया नहीं और फिर कभी नम्बर बिजी था। पता है मैं...छोड़ो! सो जाओ। प्यार मैंने किया है और ये तुम्हारी प्राब्लम नहीं है। गुड नाइट!’

उसके बाद कोमल का फोन ऑफ हो गया। रात के 1 बज चुके थे। मैं खुद इतना थका हुआ था कि ज्यादा कोशिश नहीं की बात करने की।

अगली रात।

कॉल सेंटर पहुँचने पर मुझे मनोज से पता चला कि पिछली रात कोमल क्यों मुझ पर इतनी नाराज थी? मैंने ही उसे कहा था कि मुझे ठण्ड लग रही है जिसके चलते वो अपने भाई की जैकेट लेकर रेलवे स्टेशन पहुँच गयी थी। वो काफी देर तक मेरे लिए रेलवे स्टेशन पर रुकी रही। मुझे ढूँढती रही, मेरा नम्बर लगाती रही लेकिन कभी मेरा नम्बर पहुँच से बाहर था और कभी मैं कॉल उठा नहीं सका। उसकी नाराजगी जायज थी।

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