ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
26
रात 12 बजे
आटो ने मुझे घर छोडा। जैसे ही मैं माँ से मिला उसने भी मुझे एक और सरप्राईज से मिलवाया।
एक चाय के बाद माँ मुझे पीछे गैराज में ले गयी जहाँ एक चमचमाती बाइक खड़ी थी।
‘फ्रेजर!’ मैं उसकी तरफ लपक गया। उस हाथ फेरते हुए- ‘ये आपने खरीदी है?’
‘नहीं। तेरा कोई दोस्त दे गया था, कोई संजय... ‘
‘संजय ने? यहाँ कैसे? वो यहाँ आया था?’
‘नहीं। उसका कोई दोस्त था जो घर आकर दे गया। मैं घर पर नहीं थी तो गति को चाबी और कागज पकड़ा कर चला गया। अंश, ये संजय है कौन?’
‘ये मालिक है उस एजेन्सी का जिसके साथ मैं काम कर रहा हूँ।’
‘तो? ये बाइक क्यों दी उसने? तू पैसे तो ले रहा है उनसे! ये आदमी ठीक तो है न?’
‘हाँ माँ, डरने की जरूरत नहीं है। आदमी... ठीक ही है।’
अपने कमरे में जाते ही मैंने सबसे पहले संजय से इस बारे में बात की। उसकी इस मेहरबानी की। उसके मुताबिक ये सिर्फ एक तोहफा था जिसके पीछे कोई छुपी हुई उम्मीद या इरादा नहीं था। संजय के मुताबिक मुझे उस वक्त एक बाइक जी जरूरत थी जो उसने पूरी कर दी। आखिर तक कोई ऐसी वजह सामने नहीं आयी जिस को मैं गलत या सही समझ पाता।
मैं संजय से सवाल जवाब कर रहा था और कोमल की कॉल लगातार वेटिंग में थी। मैंने संजय को बॉय कहते ही कोमल का नम्बर डायल कर दिया लेकिन वो कनैक्ट हो पाता उससे पहले ही यामिनी की कॉल आ गयी।
यकीन करना मुश्किल था कि वो उस वक्त मुझे कॉल कर रही है, अपनी हाई क्लास पार्टी के बीच, वो भी सिर्फ ये पूछने के लिए कि मैं घर पहुँच गया या नहीं। मैंने उससे बिल्कुल गिनी चुनी बातें की क्योंकि कोमल को मैं और इन्तजार नहीं करा सकता था। पिछले तीन दिनों में मैं उससे बात नहीं कर पाया था। वापसी के रास्ते में भी बस एक बार मैं उसकी कॉल उठा सका जिस पर कुछ खास बात नहीं हो पायी।
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