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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘हाँ तुम पहले टेन्स रहते थे न। चिन्ता में तो मिठाई भी खटाई लगती है। वैसे मुझे लगता है कि जबसे तुमने, ये हन्ट में हिस्सा लिया है है या तुम यामिनी से मिले हो, शायद तब से ज्यादा खुश हो।’

वो फिर उसी जगह थी।

जब मैं कोमल के संपर्क में आया था उस वक्त वो काफी अलग थी, शान्त, समझदार और स्पष्ट दृष्टिकोण वाली लड़की जिसकी सोच अब जटिल होती जा रही थी। उसे मेरी हर बात से दिक्कत थी- मेरे मॉडलिंग करियर से, यामिनी से। यहाँ तक कि मेरी पर्सनेलिटी से भी। उसे कौन समझा सकता था कि वो जिस जगह है उस जगह मेरी जिन्दगी में कोई और नहीं। दुनिया में किसी की जगह कोई दूसरा ले ही नहीं सकता। आप जो हैं, जैसे हैं खुद में अनन्य है।

इससे पहले कि मैं उसके सारे सन्देह दूर करता, मनोज ने मुझे आवाज दी।

‘कोई कॉफी पीना चाहता है क्या?’ मैंने पलटकर उसकी तरफ देखा। उसे सिर्फ कॉफी नहीं पीनी थी।

‘मैं अभी आता हूँ।’

कोमल ने मेरा सेल फोन रख लिया, उसे वो फोटो देखनी थीं जो मैंने मुम्बई में खीचीं थी।

मैं मनोज के साथ कॉफी और स्नैक्स लेने चला गया। वापस आने में हमें बमुश्किल 7-8 मिनट लगते लेकिन रास्ते में ही अचानक मनोज ने सारा सामान मेरे हाथों में पकड़ा दिया। उसने जेब एक सिगरेट निकाली और मुँह में दबा ली।

‘अब ये क्या है?’ मुझे उसके साथ रुकना पड़ा।

‘पिछले पाँच घण्टे से मन कर रहा है लेकिन ये लड़की एक मिनट के लिए मुझे छोड़ ही नहीं रही थी।’ उसने एक कश लिया।

‘तो तू उसके सामने नहीं पी सकता?’

जवाब देने से पहले वो मुझ पर हँसा।

‘तू पी सकता है अपनी कोमल के सामने?’

‘शायद...’

‘इसका मतलब तू बेवकूफ है। तेरी गर्लफ्रेन्ड को तेरे बारे में क्या पता हो और क्या नहीं, ये तुझे पता होना चाहिये। कुछ बातें राज रखना जरूरी होता है रिलेशन्स में।’

‘मैं ऐसे रिश्तों पर यकीन नहीं रखता जो झूठ पर चल रहे हों।’ वो मुझ पर और जोर से हॅसा।

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