ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘इस्तेमाल मतलब? ऑफिस और कान्टेक्ट्स को?’
‘अंश। बिजनेसमैन वो होता है जो इस्तेमाल करना जाने। हर उस चीज को जिसे वो कर सकता है। उसका पैसा, उसका समय, उसके इम्प्लाईस, उसके घर वाले, उसके दोस्त यहाँ तक कि उसके दुश्मन भी।’
‘यामिनी मुझे तो संजय बिल्कुल खुले मन का लगा। उसके अन्दर कोई बनावट नहीं है।’
‘यही, यही खुलापन, अपनापन, यही तो उसकी बनावट है। ही इज ए वैरी गुड एक्टर डियर! उसके हँसते मुस्कुराते चेहरे पर मत जाना। उसमें बस एक खूबी है कि वो स्वाभिमानी है, मतलब लगता तो है।’
‘तो आप यहाँ सिर्फ एक मॉडल नहीं हैं।’
‘हाँ मैं यहाँ सब कुछ हूँ। मेरी बात यहाँ कोई नहीं टाल सकता।’ यामिनी अपना कॉफी का कप मेज पर रखकर उठ गयी।
‘तो मैं अब चलती हूँ। एक अपाइन्मेन्ट है मेरा। तुम चाहो तो यहाँ रुको और चाहो तो घर वापस जा सकते हो, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे स्नैप्स में कोई दिक्कत आने वाली है। हमें जितनी चाहिये, उससे ज्यादा ही अच्छी आ गयी होगी। ‘
‘तो, मैं वाकईं जाऊँ कल?’
‘हाँ। वो चैक ले लिया था तुमने?’
‘हाँ। और.. एक बात जानना चाहता था।’
‘बोलो?’ वो दरवाजे पर रुक गयी।
‘मैं यहाँ नया हूँ। आपके उस हन्ट के मुताबिक तो आप लोग मुझे सिर्फ एक मौका देने वाले थे, लेकिन मैं देख रहा हूँ कि आप कुछ ज्यादा मदद कर रही हैं मेरी। मैं...गलत तो नहीं कह रहा हूँ न?’
मेरी बात पर वो मुस्कुरा गयी।
‘अंश अच्छा लगा जानकर कि सच जानना चाहते हो, वर्ना बहुत से लोग इस गलतफहमी में डूब जाते है कि वो अच्छे तैराक हैं।’
‘मुझे कुछ समझ नहीं आया, आप क्या कहना चाहती हो?’
‘अभी जितना मैं बता चुकी उतना काफी है, बस एक बात का ध्यान रखना कि तुम सिर्फ अपने लुक्स या टेलेन्ट के चलते यहाँ नहीं हो।’
यामिनी पूरी बात खुलकर बताना ही नहीं चाहती थी या शायद बात वाकई बस इतनी ही रही हो। मैं न तो कुछ समझा और न ही समझने की कोशिश की। उसने करीब एक घन्टा मेरे साथ बिताया।
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